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________________ ६२ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. कह्यो निजुत्तिए मौस के बीजीवार तेज सूत्रनो नियुक्ति सहित ते निरूपा सहित व्याख्यान करी शीखवे. निरवशेष त्रीजोके बीजी वार अर्थ आवडया पढ़ी त्रीजो सम स्त कहे. एटले त्रीजीवार संगे प्रसंगे दृष्टांत हेतु नय प्रमुख सर्व कहे. एटले ना ष्य, टीका चूर्णि ए त्रीजी व्याख्यामां समाणां. ए सूत्र नियुक्ति प्रमुख पंचांगी मा नवी देखाडी. अंग पंचमे के ० श्रीनगवतीसूत्रमध्ये, एम कहे तुं जगदीश के हे जगदीश, एम तुं कहेले. अहींयां नक्ति वचन माटे तुंकार शब्द कह्यो . यतः सुत्तबो खलु पढमो, बीउ निकुत्तिमीसि नगि तय निरवसेसो एसविहि हो अणुउगो ॥ १ ॥ अर्थः सुत्तबो खलु पढमो के पहेलो सूत्रार्थ निश्चये देवो. बीउ निकुत्तिमीसि के बीजो नियुक्ति मिश्र ते सहित देवो. नणि केक ह्योडे. तश्य निरवसेसाकेत्रीजो निरवशेष संपूर्ण कहेवो. एसविहि हो अणुउंगो के० एविधि अनुयोग ते अर्थ कहेवानो जाणवो. इति नगवती शतक पचीशमे. हवे कोइ ढुंढक बोल्यो जे “नियुक्ति प्रमुख सूत्रथी मलती नथी: तो युं माने? जे माटे गणांगमध्ये सनत्कुमारने अंतक्रिया कही: अने आवश्यकमध्ये त्रीजे देवलोके गया. ए केम मले?” तेहने उत्तर कहे. के हे देवाणुप्रिय! निर्यक्ति कार चौद पूर्वधर, समुश् सरखी बुदिना धणी हता; तम सरखा मंदमति न हता. ठाणांगनी टीका मध्ये नवांतरे ॥ सेत्स्य मानत्वात् ॥ एम कयुं बे. माटे मलतुंज . तथा तेहज नवमां अंतक्रिया मानी एतो नारकीने पण कयुं .॥ अजे गश्ए करेशा अबे गए नोकरेसा ॥ ए पाठ केम मलशे? अने कहेशो जे, सूत्रज प्रमाण तो नलू, आज वर्त्ततां तो घणांसूत्र, तेम बतां तमे बत्रीशज कां मा नोडो? वली कहेशो जे बत्रीशसूत्री मांहोमांहे मलेजे; बीजां मलतां नथी. तोय नखं. पण अमे जागीए बैए जे तमारे परस्परे मलवानुं प्रयोजन नथी. तमे केवल जिनप्रतिमाने पे बीजां सूत्र नथी मानता. पण नला बत्रीश तो मानोडो. तेपण तमारी मतिए जाणोडो जे, ते मले तो ते मेलवीआपो. ते माटे प्रसंगागत कांक लखीए बैए. ॥ समवायांगे मस्निनाथप्रनुजीने पांच हजार सातसें मनपर्यवज्ञानी अने श्रीज्ञातामां तो बाउसे कह्या. ते केम मले? तथाचसूत्रं ॥ महिनस्तां अरह उ सत्तावन्नं मणपशवनाणीसया होबा ॥ इति समवायांगे ॥ असय मणपशव नागीणं ॥इतिश्रीज्ञातायां! समवायांगे श्रीमस्निप्रनुने पांचहजार नवसे अवधिज्ञानी अने ज्ञातामांहे बेहजारअवधिज्ञानी.ए केम? २.झातामांअध्ययन पांचमे श्रीकृष्लने ब त्रीश हजार स्त्री कही; अने अंतगडदशांगमांप्रथमाध्ययने तो सोलहजार कही. ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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