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वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन.
दर
हा नगर बलतुं होय; तेरीते नूमिकाए अपफरसित आकाशतलवी उद्योत दे | खाय. २, गजिएके मेघनुं गाजवू ३, विडएके वीजलि , गंधवनयरे के अाकाशे गांधर्वदेव विशेष तेहनां नगर देखाय. अहीयां गांधर्वनगरने तेकाणे जू वए एहवो पागले. त्यां, जुवएके ज्यां संध्यानी कांति अने चंकांति ए युगपत्त मकाले नेली थाय ते अजवाला पदना पडवे, बीजे अने पुनेम ए त्रण दिन-ए वेला सांजे असाय. ५ णिग्याए के वादलां होय अथवा नहोय पण व्यंतरकत महा गरिव शब्द ते निर्घात कहीए. ६ जरकालित्ते के० को जद आकाशे दै दीप्यमान देखाय. ७, धूमिया के धूमरी वरसे. ७, महियाके ० ते धूमरीमां पण धूमर एटले महिकामा कांक वर्णकत नेद जाणवो. ए रग्घाएके सहेजे विसापरिणामे रजष्टि थाय. १०. इति. तथा वली ॥ दशविहे नरालिए अस साय पन्नत्ते अति मंसे सोणिए असुश्सामंते सुसाणंसामंते चंदोवरागे सूरोव रागे पडणे रायवुग्गहे नवस्तयस्त अंतो उरालिय सरोरे ॥ व्याख्याः-दश प्रकार नी उरालिएके औदारिक जे तिर्यंच मनुष्यसंबंधी असाय. अहिके हाड १, मंसेके. मांस. ५ सोशिए के० रुधिर. ३, ग्रंथांतरे चर्म पण कझुं. तिथंचनी साठ हाथ प्रमाण, मनुष्यनी सो हाथ प्रमाण, ऋतुकालस्त्रीनी दिन त्रण, पुत्री जन्मे दिन आठ, पुत्रजन्मे दिन सात अने हाडनी जीवरहित थया पली सो हा थमां बारवरसलगे असशाइ तथा असुइसामंते के अत्यंत दुध अगुचवि टा प्रमुख पासे ढंकडी होय तो असा ४ सुसाणंसामंतेके० श्मशानपासे अ सशाइ ५ चंदोवरागे के चंनुं ग्रहण, ६ सूरोवरागेके० सूर्यनुं ग्रहण, ७ पड ऐके मरवू. ते अहींयां राजा प्रधान सेनापति प्रमुख महकिनुं ले. जरायवुग्गहे के राजाना संग्राम थता होय तेवारे असशाय. ए उवस्मयस्स अंतो उरालियसरी रेके उपाश्रयमां औदारिक शरीर जे मनुष्यादिकनुं शरीर होयते असशाइ. १०-ए सर्व असशायना विशेष प्रकार नियुक्ति प्रमुखथी तथा गुरुपरंपराथी जणाय. ॥१५॥
हवे पूर्वे त्रण प्रकारनो अनुयोग कह्यो हतो ते त्रण प्रकार देखाडे.
सूत्र अरथ पदेलो बीजो कह्यो॥निजत्तिएरे मीस ॥निर
वशेष त्रीजो अंग पंचमे ॥ एम कदे तुं जगदीश ॥स०॥१६॥ अर्थः-सूत्र अरथ पहेलो के प्रथम सत्रार्थ आपे. एटले गुरू, शिष्यने जेवारे अर्थ आपे, तेवारे प्रथमथी शब्दार्थ मात्र आपे. ते स.डी रोते आवड्या पड़ो, बीजो
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