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________________ वीरस्तुतिरूप झुंडीनुं स्तवन. ६७७ ने दीधुं एमन कयुं. तथा देविंद नरिंद मालियां के० देवेंड् सौधर्मादिक, नरेंड् राजान नारतादिक - तेहने नाष्या प्ररूप्या अर्थ जेहना एतावता देवें नरेंशदि सिद्धांत सांजली सत्यवचन जाणे. इति द्वादशमी गाथार्थ ॥ १२ ॥ वली श्रावकने सूत्र जलवानो निषेध देखाडे बे. " वलिय विगयपडिबध ने वाचना ॥ श्रीगणांगे निषेध ॥ नवि य मनोरथ श्रुत वातणो ॥ श्रावकने सुप्रसिद्ध ॥स०॥ १३ ॥ अर्थ :- वलिय के पूर्वे कयुं तेहथी बीजुं, विगयपडिब- 5 ने के० नित्य वि प्रतिबद्ध होय, तेहने - वाचना के० सूत्रनी वाचना देवी-ते, श्री गणांगसूत्रे निषेध के० गणांगसूत्रनेविषे निषेध कस्यो बे. तथाच तत्पाठः तर्ज वायलिझा पन्नत्ता तंजदा प्रविणीए विगइपडिब दे अविनस्य विषादुडे त कप्पंतिवाइन एतं विणीए विग पडिबडे विनसविय पाहुडे ॥ इति अर्थः- तनुं वायलि झापन्नता के० त्रण वाचना देवा योग्य नही. एटले सूत्र न जणाववुं कह्या a. जहा के० तेदेखाडे बे. विलीए के० विनीत होय-विनयवंत न होय. १ विगइप डिबो के घृतादिक विगय - तेहमां गृद्ध होय - एटले योग नथी वहेतो २ विस के अव्यवस्थित, अनुपशांत प्रानृत के० नरकपालनीपरे क्रोध जे हने - एटले परमाधामीनी परे कषायवंत बे. यतः ॥ अप्पे विपारमाणिं श्रवराहे वय इखामियंतंच बहुसो नदीरयंसो अविसिय पाहुडो सखलुति ॥ १ ॥ अर्थःपारिमाणिं के० परमक्रोध समुद्घात करे इति वली तर्ज कप्पति वात्तए के० त्रण जनने वाचना देवी कल्पे. तंके० ते देखाडे बे. विनीत होय १ अविगय प्र तिबद्ध होय- एटले योगवाहीं होय. विनसविय पाहुडो के० कषाय उपशम्या होय. एवानेज सूत्र नवं कयुं. जो श्रावकने सूत्र नगवां होय तो तेहनो म नोरथ कां न होय ? ते कहे बे. नविय मनोरथ श्रुत जणवातला के० श्रुत न ० वानो मनोरथ नही कह्यो. श्रावकने सुप्रसिद्ध के० प्रसिद्धपणे श्रावकने नथी को. शामाटे श्रावक ने यतिना मनोरथ त्रण त्रण सूखा सूखा कह्या बे. यतः ॥ तिहिंगणेहिं समये निग्गंधे महाषिकरे महा पवसाणे नवइ कयालं अहं पंवा बहुंवासुखं यहिकिस्सामि कयाणं यहं एकल्लविहारं पडिमं नव संपत्तिा विहरिस्सामि कयाणं श्रहं पविम मारणांतियं संदेहला फुसला कूसिए नत्तपाण पडखा इस्किए पाजवगमं कालमणवकखेमाणे विहरिस्ता मि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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