________________
वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन.
६७५
नारा साधु विवरीने उववा प्रमुखमा कह्या : पण श्रावक नथी कह्या, तो तमे खोटी संनावना शी करो बो? मोटो एह विवेक के ए श्रावक तथा साधुने विवे क वहेंचण मोटो कस्यो . इति दशमी गाथार्थ ॥ १० ॥
थहीयां कोकनी आशंका करीने उत्तरवाले बे. ते ढुंढक बोल्यो जे “उत्तराथ्य यनमां श्रावकने कोविद कह्यो ने ते नण्याविना कोविद केम कहीए? तेहने उत्तर.
नुत्तराध्ययनेरे कोविद जे कह्यो । श्रावक पालित चंप ॥ ते
प्रवचन निग्रंथ वचन्नथी॥ अरथ विवेके अकंप॥ स०॥११॥ अर्थः-नत्तराध्ययने के उत्तराध्ययननेविषे, कोविद जे कह्यो के कोविद एट से पंमित कह्यो . श्रावक पालित चंप के चंपानगरीनेविषे पालित नामा श्रा वकने कह्यो . यतः चंपाए पालिए नामे सावए थासिवाणिए महावीरस्स नग व सीसो सो महप्पणो ॥ १ ॥ व्याख्याः-चंपानगरीनेविषे, पालिए नाम सा वए के पालित नामा श्रावक, मासिके होतो हवो. वाणिएके वणिक जा ति-ते केवो ? महावीरस्स जगव सीसो के महावीर जे चोवीशमा परमेश्व र-तेमनो शिष्य बे. महप्पणो के० ते वीर केवा के ? महात्मा . मोटो ले था त्मा जेहनो इति. वली ते श्रावक केवो जे? ते कहे जे.॥ निग्गंथे पावयणे सावए सेवि कोविए पोएणववहरते पिटुंडनगरमागए ॥ ५ ॥ व्याख्याः -निग्गंथे पा वयणे के निग्रंथसंबंधी प्रवचन-तेहनेविषे, सावए के० ते श्रावक, कोविए के पंमित ने. पोएणववहरंते के जिहां जे व्यापार करतो, पिढुंडं नगरमागए के पिहुंझनामा नगरनेविषे श्रावतो हवो. इति उत्तराध्ययने एकवीशमे थ ध्ययने जे कोविद कह्यो ले ते प्रवचननिग्रंथ के निग्गंथे पावयणे नियंथ, प्रव चन, वचनथकी के एहज वचनथी जाएीए बैए जे, प्रवचन नण्यानो संबंध ते निग्रंथनेज . अने श्रावकने कोविद कह्यो ते अरथ विवेके के अर्थनी धारणा एज होय. अकंप के अप्रकंप निश्चलपणे श्रावक लहज कह्या . पण लक्ष सुत्ता कहींए पाठ नथी. वली श्रावक कोविद को परा अधीत न कह्यो; तो ए हमां शो संदेह थावे जे? थाज पण श्रावक, सूत्र नस्याविना अर्थ करीने घणा माह्या दीसे बे. यहींयां वली ढुंढकमति बोल्योके " उत्तराध्ययनमा कमु के" सूत्र नातो सम्यक्त्व पामे " तेवारे मिथ्यात्वी थको नए एम घायु" यतः ॥ जो सुत्त महिऊंतो सुएगग्गाहश्न सम्मनं अंगेण बाहिरेणव सोसुत्तरुपति
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org