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________________ ३१० अध्यात्ममतपरीदा. रह्यो नथी बने केवल ज्ञाननो नदय थयो ते सर्व सुखरूप ले. ते सुख केव लज्ञानथकी पृथक्नूत नथी. केमके, केवल ज्ञान जे जे ते स्वनावना प्र तिघातरहित होवाथी अनाकूलतारूप में; त्यां याकुलता बेज नही, ज्यारे था कुलता नथी त्यारे तजन्य जे उःख ते क्याथी होय! अने कुःख नथी त्यारे परम सुखज ले. एवी रीते “जं केवलित्तिनाणं, तं सोरकं परण संचसोचेव ॥ खेदो तस्स नणीदो, जम्हाघादीखयं जादा” ए प्रवचनसारनां वचन असंनवित . तोपण घाटलो विशेष :-- केवल ज्ञान दायिकसुखप्रक्रिया संनवे नही; केमके, दायि क सुख तो वेदनीयकोनाक्ष्यथकीज नत्पन्न थायजे. ॥ ए० ॥ णय सुकं धुकं वा देहगयं इंदिनप्रवं सत्वं ॥ अ नाण मोह कके पमाणसिधेन संकोए ॥ एक ॥ व्या० दिगंबर एम कहे-के शरीरगत सुख दुःख सर्वइंडियथकी उत्पन्न थाय ने केम के, बद्मस्थने जे सुख तथा उःख उत्पन्न थाय ते एवी रीतेज था यो. प्रथम परोक्झानना कारणथी इंडियोनी उपर मैत्री प्रवर्ने ने, इंडियोनी मैत्री थकी विषयोनेविषे तृमा उत्पन्न थायडे. जेम अग्निथी तापेलो लोहनो गोलो होय; तेम विषयोनी तृमाएकरी इंडियो तप्त होय. ते महाव्याधिस्थानीय बे. अने तृमा टालवाने अर्थे विषय, सेवन थायले; ते व्याधीना औषधस्थानीय बे. ते यद्यपि व्यवहार दृष्टिए तो सुख कहेवायजे, तथापि परमार्थताए फुःखरूप जे. उक्तंच. “पप्पाइहे विसए, फासेहि समास देस दावेण ; परिणममाणोअप्पा, सयमेव सुह गयवदिरेहोत्ति.” इति प्रवचनसारे. ए कारण माटे देहगत सुख एं यिक . तेमज कुःखपण ऐंख्यिक डे. एवा ऐंडियक विषयोना देषथी कुःख क पजेले. माटे देहगत सुख तथा फुःख केवलीनेविषे नथी. तेथीज केवली अतीहि य थया . उक्तंच. “सोरकंवा पुण उरकं, केवलनाणिस्स नबि देहगयं ; जम्हा य दिदिबत्तं, जावं तम्हा तिणेयंति.” इति प्रवचनसारे. एनुं समाधान करेलेः-देहगत | सर्व सुख तथा कुःख इंख्यिाधीन नथी केम के, इंजियोनी पराधीनताथी जे अज्ञा न तथा मोहथकी सुख तथा फुःख नत्पन्न थायले, तेयोनेज इंडियोनी अपेक्षा, परंतु अप्रमत्तयतीने जे मानस सुख थायडे, तथा सातादिककर्मना उदयथी हु धादिक दोष उत्पन्न थायडे, तेमां इंडियोनी अपेक्षानो नियम नथी, जो एम न मानिये ने इंडियाधीनज सुख तथा फुःख मानीये तो रतिमोहनीयकर्म तथा घरति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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