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________________ अध्यात्ममतपरीदा. मोहनीयकर्मनुं नामांतरज वेदनीयकर्मना उदयथी असाता वेदनीय कर्म थाय ने | एम उरशे. त्यारे वेदनीयकर्म जुड़ कहेवाशे नही. जो वेदनीयकर्म मोहनीयसाथे मानीये तो सातज कर्म ठरशे. आठ कर्मनो संनव थशे नही. एम करतां सर्व जैन प्ररूतिनो नन्द थशे. वली देहगत सुख जो केवलीने न मानीये तो तीर्थकरनाम कर्मनो विपाक केम संनवे! जो एम कहिये के तीर्थकरनामकर्म जीव विपाकी छे, माटे तेथी जीवगत सुखतो कपजेले. परंतु देहगत दुधादिक दुःख संजवे नही. तो जेम सुखने पण देहनी अपेक्षा , तेम फुःखने पण देहनी अपेक्षा , माटे देहग तज मानवा योग्यजे, इत्यादिक सूक्ष्म विचार करी मध्यस्थबुद्धिये न्याय करो. ॥१॥ एत्तोच्चित्र बदु ःख, स्कएण तेसिं बुदाश्वेयणियं ॥ णिंबरस लवुव पए अप्पंति नणंति समय विक ॥ ए॥ व्या केवलीने अज्ञानादि जघन्य घणां दुःख मटीगयां ने, मात्र एक कुधावे दनीय रह्यु बे, ते पण घातीकर्मनी साथे मलेला जेवो पोतानो विपाक देखाडे ले केम के, केवलीने पुण्यप्रतिनो विपाक प्रबल . यतः "अस्सायमाश्यायो, जावित्र असुहा हवंति पयडीन; विंबुरस किंबुवपषु ण हुँति ता असुह यात स्त.” ए आवश्यकगाथामां तीर्थकरने असाता प्रकृति दुःखदायिनी थती नथी. जेम दूधना घडामां निंबना रसनो बिंड नाख्याथी कटुता थाय नही, एम श्रीन बाद स्वामीए कह्यु जे, जेमतेने प्रबल पुण्यपरानव करेले, परंतु तेथी कुधादिक कप जे नही एम न जाणवू, एवो नाव जणाय. पनी विशेषार्थ तो बदुश्रुत जाणे.॥ए॥ णय तं कवलाजोग्गं वेयणियं अगणिमंदयानावा ॥ णय दरज्जुकणं वेअणि हंदि सुप्रसिद्धं ॥ ए३ ॥ व्या:- केवलीन वेदनीयकर्म कवलाहार योग्य थाय नही एम न कहे. केमके, केवलीने अग्निमंदपणुं नथी. आहारपर्याप्तनामकर्मनो उदय अने वे |दनीयकर्मनो उदय दोवाने तीधे उदराग्नि प्रज्वलित थायजे. ए बन्ने कारणो हो वाथी केवलीने वेदनीय कर्म कवलाहारयोग्य थायजे. जो कोई कहेशे के, वेदनी य कर्म दोरडीना जेवू दे, तेथी केवलीने व्याबाध करीशके नही. तेने आवो ज बाब देवो के, ए वचन प्रघोष , शास्त्रनुं नथी. केमके, श्रीसुयगडांगनी टीकामां आम कडं के, “ यद्यपि दग्धरकुस्थानकत्वमुच्यते वेदनीयस्य तदप्यना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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