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________________ अध्यात्ममतपरीक्षा. श् जेवो शुद्ध परिणाम नथी, तथा बापना जेवो वेष पण नथी. माटे तेयोना अर्थ सती थी, ने ते वंदन करवायोग्य पण नथी. बीजो रूपुं खोष्टुं, होय ने बाप खरी होय ए नांगो, पासत्या, उसन्ना, प्रमुखनेविषे थाय बे; प्रमुख श देकर दिगंबरादिक पण सेवा. केमके, तेखोने रूपाना जेवो शुद्ध परिणाम नथी मात्र बापन पठे वेष तेवो बे. पण परिणामविना तेयोना प्रर्थनी सिद्धि यती नथी. वेष व माटे जहांसूधी दोष जाण्या न होय तहांसूधी वंदना करवायोग्यबे, परं तु दोष जाया पढी जो वंदना करिये तो माहा दोष लागे. यतः “जह वेलं बगलिं गं, जाणं तस्स एमनं धुवं दोसो; हिंदसत्तिणाऊ, ण वंदमाणे धुवंदोसो ” इत्या वश्यके. एनो अर्थ :- जेम कोइ जांडे यतिनो वेष लीधो होय तेने जाणीने वंदन क - रतां निश्वयेकरी दोष लागेले. तिम निर्दे इस जाणी वेष मात्र जोइने वंदना करतां ध्रुव दोष लागे. त्रीजो रूपुं चोखुं होय पण बाप खरी न होय ए नांगो प्रत्येक बुधने लागु थायले. केमके, तेस्रो अन्यलिंगे पण होय तथापि तेखोने रूपानी पठे नावचारि तो बे, तेथी पोताना खात्मानो अर्थ तो सिद्ध करेबे, परंतु साधुना पय्य विना वंदन करवा योग्य नथी. चोथो जांगो रूपुं पण चोखुं तथा बाप पण चोखी होय तेनी पठे सर्व शुद्ध जावं. जे महानुभाव यालय विहारादिक सर्व शुद्ध, यतिनी समाचारी पाले, ने विशुद्ध चारित्रवंत होय, एने रूपानी पठे शुद्ध परिणाम बे, तेथी श्रात्मानो अर्थ सिद्ध करेबे, तथा साधुनुं पथ्य बे, माटे वंदवा योग्य तथा पूजवायोग्य पण बे. एव एवा ठेका शुद्ध परिणामरूप निश्रय बलवंत बे. साधु वेषादिरूप उपचरिता सनुत व्यवहार ते निर्बलबे तथा कोईक ठेकाणे व्यवहार ने निश्चय ए बन्नेनो सरखो उपयोग बे. यहीं ज्ञान घने क्रियानुं उदाहरण जेवुं ज्ञाननयनी रीतिए ग्राम कह्युं a. ज्ञानविना क्रियामात्रथी फलनी सिद्धि यती नथी. केमके, मिथ्याज्ञानेकर सीपनेविषे रूपानी बुद्धि प्रवर्त्ते बे ने तेनी प्राप्ति तो यती नथी माटे मिथ्याज्ञानजन्य जे क्रिया, तेथी फलनी प्राप्ति यती नथी; किंतु सत्यज्ञानजन्य क्रियाथी फलनी प्राप्ति थायले. परंतु क्रिया तो झानेकरीनेज थायले, तेमां मिथ्याज्ञानजन्य क्रि या निष्फल थायले ने सत्य ज्ञानजन्यक्रिया सफल थायडे, एवीरीते क्रियानुं कारण ज्ञान होवाथी प्रधान बे खने ज्ञाननुं कार्य क्रिया होवाथी प्रधान बे, ते मज क्रियानयनी अपेक्षाए एम कसुंबे :- ज्ञानजन्य क्रियाए करीने संपादन क रेलुं जे फल, ते कोई कारणने लीधे कील थई जाय तो ते पाहुं क्रियाथी प्राप्त था; माटे क्रिया प्रधान बे. अने ज्ञान अप्रधान बे. जुवो के, ज्ञानवान बतां · Jain Education International ३८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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