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अध्यात्ममतपरीदा.
श पुलपयडीण नदये नोगो नोगांतराय विलएणं ॥ ज
इणिअचित्तचित्र, तो नोगो किण किं विणाणं॥५३॥ व्या:-- सातावेदनीयप्रमुख पुण्यप्रकृतीना उदयथी नोगांतरायकर्मनो विल य थया पली पण जो जीवने नोग थता होय तो कपणने पण नोगनी प्राप्ति थ वी जोश्ये, तेम तो नथी थतुं ; केमके, कपणने पण लानांतरायकर्मना श्योप शमयकी इव्यनी प्राप्ति तो थायने, परंतु नोगांतराय कर्मना वशथी जोगवी शकतो नथी. माटे जे आपणने नोगवायोग्य होय ते स्वव्य कहेवाय, ने बीजं बधुं पर व्य जे एम जाणवू. एवी रीते व्यवहार नयना मते पण एकांत नथी; माटे ए सर्व पुजल इव्यने परकरी जाणवू जोश्ये.॥ ५३॥
यथा सर्व पुजल इव्य परकीय जे एम जे जाणे नही तेने श्रात्मस्वनावनी प्राप्ति न थाय. ते कहे .
जो परदवंमि पुणो करे मूढो ममत्त संकप्पो ॥ सो
कदाय सहायं गिन्चो विसएसु नवलदई ॥५४॥ व्या:-- व्यवहारमूढ जीव परश्व्यनी उपर ममत्वसंकल्प करेले, ते विषय लोलुप थयो थको आत्मस्वनावने पामतो नथी. केमके, शरीरादिकनेविषे 'ढुं मा तेलो भु, दूबलो हुँ, ढुं गोरो बुं तथा हुँ कालो बुं' इत्यादिक अहंकार जीवने उत्पन्न थायले; तथा 'मारुं शरीर, मारुं कुटुंब; इत्यादिक ममकार उत्पन्न थायडे; तेथी विषयोनेविषे दृढप्रवृत्ति थायजे, अने विषयना अभ्यासे तेयोनेविषे दृढ नाव थायडे, एवी परंपराए करीथज्ञाननी वृद्धि थई गयाथीथात्मज्ञान केम थाय!॥५४॥
पाहं दोमि परेसिं ण मे परे पनि मशमिहकिंची॥
श्य अप्पनावणाए राग होसा विलऊंति ॥ ५५॥ ध्या:-हुँ बीजा कोईनो संबंधी नमी, तेम मारो कोई बीजो संबंधी नथी, था जगतनेविषे मारुं काई नथी, केमके, परव्य, अस्तित्व निन्न ले; अने मारा था त्मव्यतुं अस्तित्व निन्न , शरीर कुटुंबादिक कर्मना योगे संयोग लक्षण नावडे; तेमा मारुं काई लागतुं वलगतुं नथी, केमके, तेयोनो वियोग पण थायडे, जेनो कोई काले संयोग तथा कोई काले वियोग थतो होय ते पोतानुं इव्य कहेवाय नहीं जेनो कोई काले वियोग थाय नही ते पोतानुं इव्य कहेवाय बे, एवो तो आत्मस्त्र
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