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________________ अध्यात्ममतपरीक्षा. यि सकचिय संवं णो परकयं दवइ वनुं ॥ परिणामा बंऊत्ता यबंऊं दाण दरलाई || ४७ ॥ व्या० :- निश्वयनयची सर्व वस्तु श्रात्मपरिणामथी उत्पन्न यायले; परंतु पर श्री परवस्तुनी उत्पत्ति यती नथी. केवल पुष्य पापकर्मना विपाकने अवसरे पाशे चावेला जे अंगना सर्पादिक बाह्य अर्थ ते निमित्त मात्र बे तेने व्यवहार बद्ध मूढ जीव कारण करी माने बे. व्यवहारवादी कहेले के, ज्यारे परकारणत्व नथी, त्यारे साधुने दान दीधाथी गुनफल ने परश्व्यनुं हरण कस्याथी गुन फल केम थायले ? निश्वयवादी समाधान करे बे के निर्दोष याहार साधुने देतां ते देनराना जे शुभ परिणाम होयले, तेथी गुनफल थायले, परंतु यन्नादिक पुजलरू प होवाथी, तेथी फल यतुं नथी. केमके, पुजल इव्यथकी पुजल परिणाम थाय बे; परंतु श्रात्मपरिणाम नथी यतो: तेमज परव्यनुं हरण करवायी जे शुन फल थाले, ते पण आत्माना असुन परिणामे करी थाय बे, परंतु इव्यरूप पु जल थकी नथी यतुं ॥ ४७ ॥ अ० :- निश्चय थकी दान पण श्रात्मपरिणामरूपले, पुजल परिणामरूप नथी एम कहे : दितो वहरंतो वा राय किंचि परस्स देइ अवदरई ॥ देश सुदं परिणामं दरइ वत्तं अप्पणीचेव ॥ ४८ ॥ व्या०:- निश्वयथकी तो साधुने निर्दोष याहार देतां तथा परव्यनुं हरण क रतां ते दान देनार तथा इव्य हरण करनारने विषे कांई देवुं, तथा जेवुं बन्युज नथी. कोई कोईने दान देतो नथी, तथा कोई कोईनुं इव्य हरण करतो नथी. साधु ाहारादिकनुं दान देतां देनारो पोते पोतानेज परानुग्रह बुद्धिरूप गुप रिणाम दिये; तथा परनुं इव्य हरण करतां ते हरण करनारो जीव घात बु दिए करी पोतेज पोताना शुन परिणामनुं हरण करे. परंतु परने विषे कांई दे बुं जेवुं संनवे नही. ॥ ४८ ॥ य धम्माव सुदं वा परस्स देयं गया विहरणिजं ॥ कयणासा कयोग, प्पमुदा दोसा फुमाइ हरा ॥ ४९ ॥ व्याo :- जो परात्मा परने देतो होय तो पोतानो धर्म तथा पोतानुं सुख बीजाने देवाई शकाय बे; घने जो परनो खात्मा परनुं हरण करतो होय तो Jain Education International १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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