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अध्यात्ममतपरीक्षा.
अकारण वस्तुथी. परिणामरूप कार्यनी उत्पत्तिनो संभव केम थशे. कार्यनी उत्प ति तो कारणथी थायले पण अकारणथी थाय नही, इत्यादिक सूक्ष्म विचार कस्या थी बन्ने पद अंगीकार करवा योग्य जे एवं सहज जणाई श्रावशे. ॥ ३ ॥
अनंतर बसाणं बलिज्जाबलितणंति जश् बुद्धि॥नणु कयरं अब लत्तं वेचित्तंवा विवेसम्मं ॥४४॥ णिप्पत्तीव फल अणिचय जोगो फलेण वा सिद्धं ॥ पढमे समसावग्गी बि ति ए वावार वे सम्मं ॥ ४५ ॥ तति ए दोण विसमया सनद परको पुणो असि घोत्ति ॥ तेण समावेरकाणं दोम विसमयत्ति वबुईि॥ ४६॥ व्या:- कोई कहे के, कर्मरूप अंतरंग हेतु जे जे ते बलवान ले. अने उद्यमा दिरूप बाह्यहेतु जे डे, तेनिर्बल जे. एम कहेनारा नयवादीने एम पूQ के, कर्म रूप अंतरंग हेतु केवी रीते बलवान डे ? जो कहेशो के एक जातनो उद्यम करनारा पुरुषोने कर्मनी विचित्रताने लीधे सुखःखनी अधिक न्यूनता दीशेले, तेथी कर्मरूप अंतर हेतु- बल सिप थायले. तो ते कर्म शाथी थया ले ? एनो विचार कयाथी पूर्व नवना उद्यमथीथयांजेएम नरशे. एथी उद्यमनी विचित्रताने लीधेजकर्मनीविचित्रता
॥४॥जो कहेशो के, सुखना कारण बतां पण अशातावेदनीयकर्मना उदये जीव ने छुःख ऊपजे, ए कर्म, बलवंतपणु जाणवू; अहीं दृष्टांत ए के, जेम कोइक मनुष्य ने दूधना पानथीपण उःख थायले. ए वचनपण समर्थ नथी वहीं पण नवांतरना उद्यमनी अपेदा डे, केमके, उग्धपानादिके करी पण पित्तादिकना योगे तिक्तरसादिक नु उद्योधन थयाथी कुःख ऊपजे. ॥४५॥ जो कहेशो के, कर्म पोताना नोगने अर्थ बाह्य कारणने लिये,ते बल ले. तो जन्मांतरनोउद्यम जन्मांतरना फलनोगने अर्थे, अंतराले कारण कर्मादिक कारण उत्पन्न करेले एम पण कहेवाई शकायचे. जोक हेशो के, कचित् बाह्यकारणविना कार्यनी उत्पत्ति थायजे; पण अंतरंगकारणविना कोई कार्यनी उत्पत्ति थायज नही; ए बलजाणतो एम पण संनवे नही; केमके, सादात् अथवा बाह्यकारणथीज कार्यनी उत्पत्ति थायडे, ते विना कार्य थायज नही. किंबहुना कालादिक बाह्य कारणविना कोई कार्यनी उत्पत्तिज थती नथी. माटे परमार्थताए बाह्य तथा अंतरंग ए बन्नेकारण सरखांज . ए वस्तुस्थिति कहेतां बे नयने अनुरोधे प्रमाणमार्ग . ॥ ४६॥ . अ० निश्चयनयनुं मत कहे :
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