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________________ अध्यात्ममतपरीक्षा. २०३ मं वा दविए, रागो दोसो अभाव चठनेया ॥ कम्मं जोग्गं ब, बसंतमुदीरणोवगयं ॥ १७ ॥ णो कम्म दवराव, गायो वीस साप गंगा य ॥ संकाइ कुसुंभाई, दोसो डुबाई ||१८|| जं राग दोस कम्मं, समुन्नं जे तो अपरिणामा ॥ ते जावराग दोसा, वो मिढ य समोच्यारं ॥ १९ ॥ कोढो माणो दोसो, माया लोनो राग पजाया || संगहणयमयमेयं, दोसो माया वि वदारा ॥२०॥ नकुसु अस्सय कोहो, दोसो सेसेसु चि गंतो ॥ कोदोचिय लोहोचिय, माणो मायाव सदस्स ॥ २१ ॥ व्या० राग तथा द्वेषनां नाम, स्थापना, इव्य तथा नाव ए चार चार प्रकार होवाथी बन्नेना चार चार भेद थायले. जेम के, नामराग, स्थापनाराग, व्य राग, तथा जावराग ए चार भेद रागना थायले. तेमज नामदेष, स्थापना द्वेष, इव्यद्वेष, तथा जावद्वेष ए चार नेद द्वेषना थायडे. जेनुं राग एवं नाम होय ते नामराग कहेवाय. रागवाननुं जे चित्र कहाडेनुं होय ते स्थापनाराग कहेवाय. इव्यरागना बे प्रकार बे :- एक कर्म व्यराग, बीजो नोकर्मइव्यराग, एमांना कर्म व्यरागना चार प्रकार बे:- एक योग बीजो बड्यमान, त्रीजो ब-5, खने चोथो उदीरणाप्राप्त. जे मोहनीयकर्मना पुजलबंध परिणामने अभिमुख थया होय ते योगकर्म व्यराग कहेबाय. जे मोहनीयकर्मना पुजलबंध क्रियाना परिणामने पाम्या होय ते बधमान कर्मव्यराग कहेवाय. जे मोहनीयकर्मना पुल बंध परिणामनी निष्ठाने पाम्या होय तेबद्धकर्म इव्यराग कहेवाय. खने जे मोहनीय कर्मना पुल उदयने पाम्या होय ते उदीरणाप्राप्त कर्म व्यराग कहेवावे. तेम नोकर्म व्यरागना बे प्रकार बे:- एक विश्वसा, बीजो प्रयोग. जे संध्याराग प्र सुख देखायचे ते विश्वसानो कर्म इव्यराग कहेवाय; घने जे वस्त्रादिकने विषे कु सुंनादिक राग देखायने ते प्रयोगनो कर्मव्यराग कहेवाय. खने जावरागना पण बे प्रकार बे: - एक उदयप्राप्त, बीजो परिणाम. मोहनीयकर्मनो उदय थाय ते उदयप्राप्त नावराग कहेवाय अने मोहनीयकर्म परिणामने पामे ते परिणामावराग कहेवायले. जेनुं द्वेष एवं नाम होय ते नामद्वेष कहेवाय देवाननुं जे चित्र कहा मेलुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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