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________________ अध्यात्ममतपरीदा. जए वस्थान तो केवलीने सर्वथकी अधिक जे. ए कारण माटे अयोगीने तो योगनि रोधरूप ध्यान , अने बद्मस्थने करणना दृढव्यापाररूप ध्यानले. एवी रीते गुन योगेकरी प्रवर्तनीय जे ध्यान, तेमां वाद विवाद शानो होय ! ___० कोई आशंका करे के, जो उपकरण होय तो राग पण होय, माटे नप करण सर्वथा त्याग करवा योग्य जे, तेम जो न करिये तो उत्सर्गमार्ग केम रहे? एप्रश्ननो उत्तर दिये :- ॥ ५ ॥ जा खलु सरागचरिआ, साविय नस्सग्गमग्गसंलग्गं॥ मोत्तुं अववायपयं, अप्पसंगी परविसेसो ॥१०॥ व्या जे स्थिविरकल्परूप सरागचर्या कहेतां सरागमार्ग बे. ते पण उत्स र्गमार्गने लागेलोज जे. अर्थात् अपवाद मार्ग अने नत्सर्ग मार्ग निकट संबंधी बे. यद्यपि स्थिविरकल्पी पण अपवादनो तो त्याग करेडे, तथापि कोई कारण ने लीधे तेने ग्रहण पण कर, जोये. अने जिनकल्पी तो कदापि अपवादनुं ग्रह एग करेज नही. एवी रीते स्थिविरकल्पी तथा जिनकल्पीना अपवाद तथा उत्स र्गमार्गमां अल्प अंतराय . एटले अपवादमार्ग थकी नत्सर्गमार्गनी काईक उत्कृष्टता , तेथीज बे नेद थयावे. अने जिनकल्पनी अपेक्षाए स्थिविर कल्प | कह्योने. तेमज उत्सर्गमार्गनीअपेदाए अपवाद मार्ग कह्यो बे. जो उत्सर्ग मार्ग थकी काईक न्यूनता वालो अपवाद मार्ग, तथा अपवादमार्गथी काईक अधिकतावालो उत्सर्ग न कहेगुं तो चौदमा गुणस्थानकना अंतना समयसुधी उत्सर्गमार्गनो संनव थशे नही. केमके सर्वोत्कृष्ट संवर तिहांज . माटे जे ठेकाणे जे मार्ग उत्कृष्ट कह्यो होय ते ठेकाणे तेज उत्सर्गमार्ग ले. जेमके स्थि विरकल्पनेविषे चौद उपकरणज उत्कृष्ट होवाथी ते उत्सर्ग मार्ग ले.॥ १० ॥ उ० मूल गाथावडे पूर्वपदी आशंका करे :नणु बसंगं सादण, मववान अंतरंगमुस्सग्गो ॥ जा पुण सराग चरिया, समुच्चिया णेव सिधाए॥१॥पडिसेवणो पुणलो, अववा - फुडो अणायारो॥ता वनाई गंथो, णो नस्सग्गो ण अववान॥१॥ व्या:- परव्यमात्रनी जे निवृत्ति, एटले परव्यनो काई पण परिग्रह रह्यो न होय, मात्र आत्मव्यनोज प्रतिबंध होय, तेज संयमनुं अंतरंग कारण ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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