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________________ अध्यात्ममतपरीदा. २७ ध्यवसाय पण घणानेविषे दीगमा आवेने. एने तो रोऽध्यान कहेता नथी! जो। एम कहेशो के, यतिने शरीरने विषे राग नथी होतो, तेम बतां सर्पादिकथी शरीर नी रहा तो धर्मसाधनने अर्थे करेले. तेथी तेना अध्यवसाय अशुन होता नथी. एम पण संनवे नही! केमके, यतिने शरीरनी पत्रे धर्मोपकरणनपर पण राग हो तो नथी. तेम बतां तेनीरदा पण धर्मसाधनने अर्थे करेले. एवी रीते शरीरना जे वांज धर्मोपकरण ठरेले. तेम बतां तेश्रोनी नबापना करतां तमने शरम थती नथी! न:- कोई आशंका करे के, नपकरण जे जे ते ध्यानना विरोधी जे. केमके. तेओना प्रतिलेखनादि बाह्यव्यापारना योगे अंतर यात्मतत्वने विषे चित्त एकाग्र तारूपध्यानमां विघ्न थायजे. एम कहेनाराने उत्तर दिये जे. ॥ ७ ॥ जो किर जयणापुबो, वावारो सोण जाण पडिवको॥ सोचेव होइ जाणं, जुगवं मण वयण कायाणं ॥७॥ व्या:- आवश्यक पडिलेहणाप्रमुख जे जयणाएकरी व्यापार थायडे ते प ए ध्याननो विरोधी होवोजोये; एने तो कोई विरोधी कहेतो नथी किंतु एतो ए क कालाश्रित मन, वचन, तथा कायासंबंधी ध्यानरूप होय. जेमके, शुजयो गे करीमन एकाग्र होयडे, एनेज मन संबंधी ध्यान कहे; निरवद्य वचन बोला यजे, अने सावध वचननो त्याग थायडे, एनेज वचनसंबंधी ध्यान कहे। अने गुनयोगनेविषे यत्नेकरी कायानी दृढता थायडे, एने कायसंबंधी ध्यान क हेले. जो तमे एम कहेशो के, नगवंते एकसमयनेविषे बे क्रियानो निषेध कह्योने; तेम बतां एकसमयाश्रित मन, वचन तथा काया संबंधी ध्यान केम संनवे ? ए नो उत्तर यामः- नगवंते जे एकसमयनेविषे बे क्रियानो निषेध कह्योने ते निन्न विषयविषे ने एक विषयविषे निषेध नथी कहो. जेमके, वांदणाना आवर्तननेवि षेत्रण योगनी क्रिया एकज समयनेविषे थायले. यतः “निन्नविषये णिसिई, किरि या उगमेगयाण एगम्मि : जोग तिगस्त विनंगिय, सुत्ते किरिया जनणिया." उ:- कोई आशंका करे के, ध्यान जे जे ते योगनो परिणाम नथी. के जेनी प्रवृत्ति बाह्य व्यापार करतां थाय. जो योगना परिणामरूप ध्यान होय, तो लेश्या अने ध्यान एक कहेवाय. एअोमां कोई न्यूनाधिकता होय नही. तेम तो नथी देखातुं. लेश्याोनुं रूप पण जुउंले, ने ध्याननुं रूप पण शास्त्रोमां जुई कझुंडे. वली जो योगपरिणामरूप ध्यान होय तो चौदमे अयोगिकेवल गुण Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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