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स्तोत्र.
॥ त्रिशूलं ॥ चुक्ता या त्वयि नव्याली धन्या धत्तेस्म चेतसा ॥ सामता तामसाकाममकासारंगसागरं ॥ १७ ॥ ॥ दनं ॥
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त्रिशला कुदिपाथोजराजहंस जगद्विनो || जोगास्तृणमिव त्यक्तास्त्वयामुक्ति दिदृक्षया ॥ १८ ॥ ॥ धनु ॥ सुरासुर नमस्तुन्यं नमस्यति जिनोत्तम ॥ मनःप्रसादसंदर्भदलिता गुनवासना ॥ १९ ॥ ॥ शर ॥ कथं कर्तुं जनो मोहव्यपोहम हहमः ॥ मनसा सादरं यस्त्वां न स्तौति तिमिरापहं ॥ २० ॥ ॥ शक्ति ॥ बाल्यो मरुशिरःकंप संपत्प्रतिविक्रम ॥ मनोजन कहव्या मम स्वामी नवाजवं ॥ २१ ॥ ॥ अष्टदलकमलं ॥ मानितार्यक्रमामार रमामाकंद माधवः || वधमार्गे ममाकास सकामाधीः प्रतानि मा ॥ २२ ॥ ॥ पोडशदल कमलं ॥
वनया न घनस्वान ध्यानमौन कनन ॥ ज्ञानस्थान जिन श्रीनवनमेनस्वनःस्व नः ॥ २३ ॥ ॥ स्तुत्यनामगर्भं वीजपूरं ॥
जय हेमay. श्री जगन्मोहापहारक ॥ जराहिवीन सिंहांक जन्मनीरधि नाविक || २४ ॥ ॥ दश ॥
तुभ्यं नमोस्तुलनय स्थितिकाय नीतिवन्यासुपावक सुरस्तुत वीर नेतः ॥ विद्याल ताविपुलमंडप हेमरूप कल्याणधीकरणदछ नतेदमीन ॥ २५ ॥
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