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________________ शृंगारवैराग्यतरंगिणी. २३ए कामरूप नील, मनुष्योने बांधिने फरी बोडी मूकतो नथी, अर्थात् बांधेलोने बांधेलो ज रहेवा दिये. जेम अरण्यमां मार्गे चालनारा लोकोने चोर, वेलिवडे बांधिने तेषोनुं सर्वस्व हरण करीलीये, तेमज मृगेदणा स्त्री पोतानी बाहुलताए कंठने विषे बंधन कस्या पनी पुरुषने मूकती नथी. श्रा वृत्तमां, स्त्रीने मर्यादारहित कही, तेथी हावनाव सूचव्या ने, स्त्रीने वनरूप कही ने तेनी नुजाने लतारूप कही, एमां कोई पुरुष सपडाय तो फसी पडेले, अ र्थात् स्त्रीए नुजावडे आलिंगन कर्तुंबता तेथी पुरुष लूटी शकतो नथी, ए शृंगार रस , अने ए वनमा कामरूप चोरटा वशे ते मोक्षमार्गे जनारा पुरुषतुं धर्म धन प्रमुख हरण करी लेनार बे,माटे त्याग करवा योग्य बे, ए वैराग्य रस डे. ॥४१॥ शिखरिणीरत्तम् ॥श्यं वारं वारं द्युतितुलितरोलंबवलयं न वक्र भ्रूचकं चलयति मृगादी मम पुरः ॥ कुधीकारागारापसरणमति मां स्खलयितुं प्रपंचत्पंचेपोर्वदति निवडं लोदनिगडम् ॥ ४॥ अर्थः- मृगलोचना जे स्त्री , तेनु जे वांकुं त्रुकुटिचक्र , ते नमरायोना जेई कांतिवाटुंबे, ते मारी सांबे वारंवार चंचल करेले, एम नथी; पण नरशी बु विरूप काराग्रहथी दूर नाशी जवानी इलावालो जे ढुं बुं, तेमने नाशी जवा न देतां कामना प्रपंच युक्त दुःसह जे लोखमनी बेडी धारण करेली , अर्थात् जेम चोरने बेमी नाखीने बंदीखानामां नाखेडे, तेमज मने पण वश करवा सारु आ स्त्री कुटी चक्ररूप कामदेवनी लोखंमनी बेडी धारण करे. __ आ वृत्तमां, स्त्रीनें त्रुकुटिचक एवं ले के जे पुरुष तेना फासामां आवे ते फरी लूटी शकतो नथी, अर्थात् अति मोह नत्पन्न करनारूं ; ए शृंगार रस ; अने स्त्रीन चुकुटिचक काम देवनी लोहनी बेमी ने, माटे तेनो त्याग करवो जोये ए वैराग्य रस .॥ ४२ ॥ मंदाक्रांता उत्तम् ॥ यामोन्यत्र ततरमितो मित्र यत्कंठपी नायं दारश्चकितहरिणीलोचनाया चकास्ति ॥ नानीरंधे विदितवसति योस्ति कंदर्पसर्पस्तन्मुक्तोयं स्फुरति रुचिरः किंतु निर्मोकपट्टः॥४३॥ अर्थः-हे मित्र, आ आपणे स्थानकने मूकीने जलदीबीजे तेकाणे जवु जोये. के मके तृषावान थएली हरिणीना नेत्रना जेवां जेनां नेत्र , एवी स्त्रीमोना कंठमां जे -- - -- ----------- - --------------------------------- ------- ---- ---- - - -- - - -- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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