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________________ २३८ शृंगारवैराग्यतरंगिणी. अर्थ :- हे पुरुष, जो तने मुक्तिरूप नगरी प्रत्ये जवानी अनिरुचि होय, तो तूं कामरूप गजशिने क्रीडाने अर्थे, विहारविषे योग्य एवा या स्त्री नितंबरूप स्थली एटले भूमि, तेने तूं दूर मूकीदे. जो तूं ए नूमिने मुकीश नही, तो यौवनरू प प्रबल वायुए कर विस्तारने पामेला व्यामोहरूप रजःकणो तारां नेत्रोमा पमशे तेथी मार्ग सुनार नथी अर्थात् मोक्षमार्ग मलनार नथी. यांखोमां धूल गयाथी मार्गने जोई शकातुं नथी. ए प्रसिद्ध बे; एम संसाररूप अरण्यमां भ्रमण करीश. या वृत्तमां, कामने हस्तिनाबालक जेवो कह्योबे. तेने क्रीडा करवाने स्त्री नितंब रूप पृथवी बे, अर्थात् कामक्रीडानुं स्थान जे स्त्रीना नितंब कह्यावे. ए शृंगाररस बे; पृथवीने विषे यौवनना योगे नेत्रोनेविषे रजःकणो पमयाथी मार्ग सूजतो नथी; अर्थात् स्त्री नितंबरूप भूमिनेविषे जे पुरुष यावी जायबे ते विषयरूप रजःक करी हृदय aई जायबे. माटे एत्याग करवा योग्य बे. ए वैराग्यरस बे. ॥ ३९ ॥ मालिनीवृत्तम् ॥ शमधनमपहर्तुं काम चौरप्रचारं विरचयति निकामं कामिनी यामिनीयम् ॥ सपदि विदधती या मोह निषासमुद्रां जनयति जनमंतः सर्वचैतन्यशून्यम् ॥ ४० ॥ अर्थः- या कामिनीरूप यामिनी एटले रात्रि, उपशमरूप धन हरण करवाने सारू कामरूप चोरनो अत्यंत प्रचार प्रगट करेबे; तथा मोहरूप निदानी समृद्धि कर नारी जे रात्र, ते जन एटले मनुष्योने अंतःकरणने विषे सर्व चैतन्य थकी रहित करे. जे रात्रिने विषे सर्व मनुष्य निश्ति बतां इव्य हरण करवासांरू चोर फिरे बेतेनी पठे जाणी जेवुं. या वृत्तमां, स्त्रीने मोह उत्पन्न करनारी रात्रि कहीले, ने कामने चोर कह्योबे, र्थात् स्त्री कामोत्पत्ति करनारी बे, ए शृंगाररस बे; घने ए रात्रिने विषे मनुष्य ज्रम करे तो कामरूप चोरना सपाटामां खावी पोतानी संपत्ति तथा प्राण प्रमुख सर्व खोई दिये, माटे एनो त्याग करवो योग्य वे ए वैराग्य रसबे ॥ ४० ॥ उपजातिवृत्तम् ॥ मृगेणा नूनमसावसीमा भीमाटवी बुद्धिमतामती ॥ यावनी निरनंगनिल्नो बध्वा नरान् संजयते न मुक्तिम् ॥४१॥ अर्थः- जे बुद्धिमान पुरुषोने प्रतिक्रमण करवा योग्य नथी, जेने मर्यादा नथी, जेना मृगना जेवां नेत्र बे, एवी या स्त्री ते जयंकर वन बे; जेनी बाढुलताए करी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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