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________________ २०७ आस्तिक नास्तिक संवाद. ५७ नास्तिकः-कोइ वेदधर्मी प्रम करेले के, तमारा जैनमतमा जीवना स्वरूपा दिकनेविषे केवीरीते वर्णन करेलुंजे ? तेने उत्तर दिये ले के, सर्वज्ञ केवलीए आवी रीते कह्यु :-सर्व लोकनेविषेधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय थाकाशास्तिकाय,काल,जीवा स्तिकाय तथा पुजलास्तिकाय एब इव्य नरपूर जे. ए बए ऽव्य पोतपोताना गुण तथा पर्याये करी पूर्ण ने. सदा नावरूप ले. जगतनी स्थिति जेम वर्तमान कालमां , ते मज जूत कालमा हती. अने नविष्य कालमां पण एवीरीतेज जाणवी. ते मध्ये जीव अने पुद्गल अनंत काल लोलुपनूत . एटले जेम वीर तथा पाणी अने मृत्तिका तथा धातुनुं मिश्रण थयाथी एक रूप बनी जाय ले. तेम जीव तथा पु जलोपण एकरूपे रहे ले. समय समयने विषे नवां कर्म जीवबांधे जे. अने समय स मयने विषे पूर्व कर्म निजरीने छूटी पण जाय ले. कर्मोनी उत्पत्ति तथा नारामां ईश्वर- कांश कारण पणुं नथी ईश्वर तो अकर्ता ले, तेने विषे का पणुं कल्पाय नही. माटे ईश्वर कोईनुं कारण नथी. काल, स्वनाव, नियत, पूर्व कर्म, तथा पु रुषाकार ए पांच कारणो नत्पत्तिना कह्यां बे. एणे करीनेज पुण्य पाप जन्य स्व र्ग नरकने विषे गमनागमन थाय . अने दमकमां जे नरक, तिर्यच, मनुष्य त था देवतानी चोवीश गतियो कही जे. ते प्रमाणे नवपरंपराने पामेजे. अने पो ताना नपार्जेला शुनाशुन कर्म नोगवे . ते ते नवने विषे झानावरणादिक आ ठ कर्मने अनुसारे वर्ते जे. जेम माटीनी नरेली तूंबी जलमां नाखीए तो ते मा टीना नारने लीधे मूबी जाय जे. पी जेम जेम ते माटी, तेमांथीयोबी थती जा य तेम तेम ते तूंबी उपर आवती जाय . ज्यारे बधी माटी नीकली जाय त्यारे पा णीनी नपर तरती रहे ले. पण पाणीथी नपर जाय नही तेवी रीते जीव पाप कर्मथी पायो थको अधोगतिने पामे बे. पनी जेम जेम ते कर्मनी न्यूनता थती जाय तेम तेम ते कर्ध्व गतिने पामतो जाय जे, ज्यारे बधा कर्मानो नाश थ ई जाय ले. त्यारे ते जीव लोकायने विषे प्राप्त थाय छे; पण तेनी उपर अलोक मां गमन करतो नथी, जेवी रीते तुंबी जलना योगे तुंची आवे , तेम जीव ध मास्तिकायना योगे लोकांत रूप कवं गति पामेले. वादी धाशंका करे ले के, मनुष्य शाना बलथी सात राज लोक सुधी ऊर्ध्व ग मन करे ? जीव तो चौदमे गुणगाणे अयोगी याय जे. एनो उत्तर दिये ले के, जेम धनुष्यथी जे बाण बूटे बे. ते पूर्व जोरना बलथी चाले. तेने वचमां बीजो को ई चलावनारो जोई तो नथी, ज्यारे धनुष्यमाथी बाण लूटे , ते हणने विषेज नि - . - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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