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________________ २०३ आस्तिक नास्तिक संवाद. समये पोताना कारण पंच महाभूतोमा लीन थशे; ने पंच महाभूतो ईश्वरमां लीन थशे. आस्तिकः-जो एम होय तो ईश्वर जड मिश्रित थाय. अने ते समल तथा निर्मल ए बे अवस्थावालो कहेवाशे. त्यारे केवल ज्योतिस्वरूपपणुं क्यां गयुं ? जे पंच महाभूतोथकी जगतनी उत्पत्ति थई कहोडो ते तो सदा शाश्वत ले. ते अोमा पृथ्वी, आप, तेज तथा वायु: ए चारे नूतो पोतपोतानी क्रिया करे, के म के, वनस्पति घने जंगम सनी उत्पत्ति करे ते क्रियाविना थाय नही. एवी रीते तो जीवनी न खान शाश्वत सदा काल ले, त्यारे प्रलय ते शानो थयो ? जो एम कहेशो, के पंच महानतो जगत विनिर्मित क्रिया करता नथी, त्यारे तो ते नूतव्यरूप कथन मात्रज उरशे. अने हरेक वस्तु पोतपोताना गुणविना रहे नही एवो नियम ले. वली जो कहेशो के नूत तो अनंत कालना ले. त्यारे तो संसार पण अनंत कालनो तरशे. तेनी नुत्पत्ति तथा प्रलय केम कहेवाय ? ए तो जेम ले तेम ले. वली ईश्वर मनसा वाचा कर्मणा करि रहित बे, अने एक थी अनेक था एवी मननी इबा यई त्यारे जगतनी उत्पत्ति करी. ए बे वाक्यो नो परस्पर विरोध बे; केम के, प्रथम वाक्यप्रमाणे ईश्वर इनारहित तरे : ने बीजा वाक्यमा झासहित कहो बो: एवो पूर्वापर वचनविरोध होवाथी तमारूं बोलवू सर्व असमीचीन जे. __४ नास्तिकः- सर्व वस्तुनो ईश्वर अधिष्ठान जे. ईश्वरनी बाथी कृत तथा अळत सर्वे थायने. - थास्तिकः- जो एमवे तो घट ते पट केम थतो नथी ? पण तेम थाय नही; केमके, घटनुं कारण मृत्तिकानुं पिंक डे, तेमांथी घटज थायने. पण पटादि कार्य नथी थता. तेमज पटनुं कारण तंतु ले, तेथकी पटज थाय; पण घटादि क बीजा कार्यनी मुत्पत्ति थायनही. जो एम यतुं न होय तो कारणथी कार्य थायडे, ए प्रवृत्ति मिथ्या थाय. माटे ईश्वरना अधिष्ठितपणातले ईश्वरनी साथी कृत तथा अरूत सर्व थायने ए तमारूं कहे सर्व व्यर्थ ने. - नास्तिकः- जीवने नवांतर थाय ने खलं, पण वेदनो बेद थतो नथी. पुरुष वेद ते स्त्री वेद न थाय, स्त्रीवेद ते पुरुषवेद न थाय ; तेम स्त्री तथा पुरुष ते नपुंस क वेद न थाय ; अने नपुंसकवेद ते पुरुष तथा स्त्री वेद न थाय. एम जाणवू जोये आस्तिकः-पुजलना परिणामनो नियम नथी. एना पुनः पुनः रूपांतर थया क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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