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________________ एए आस्तिक नास्तिक संवाद. ३७ नास्तिकः-सर्व जगतमा एकज ईश्वर ने. इश्वर विना बीजुं कांई नथी, ए म जाणवू जोये. यास्तिकः- जो सर्व जगतमां एक ईश्वर होय, तो दाननो देनार पण ईश्व र, अने लेनार पण ईश्वर कहिये. सेनार अने देनारमा काई नेद थयो नही. ई श्वरे पोते पोतानी पाशेयी दान लिधुं त्यारे दान दीधार्नु पुण्य कोने थयुं ? एथी दान तथा पुण्य व्यर्थ गया. वली मारनार पण ईश्वर ने मरनार पण ईश्वर कहेवो जोये: तो ईश्वरे ईश्वरने मास्यो तेनु पाप कोने लाग्युं ? धणी पण ईश्वर ने चोर | पण ईश्वर; तो ईश्वरनो माल ईश्वरे चोयो कहेवाय, त्यारे चोरीनी तपाश शासा रु करवी जोये ? पुण्ये करी स्वर्गमा गयो ते पण ईश्वर, तथा पापे करी नरकमां | गयो ते पण ईश्वर; त्यारे स्वर्गमां पुण्यवान जाय अने नरकमां पापी जाय; एमक हेतुं व्यर्थ जे. ए उपरथी तमारुं बोलअसंनवित ले. जगतमा एकज ईश्वर ने एम जे कहेतुं ते असत्य . घटघटप्रत्ये जीव जुदा जुदा ने, अने तेथोनी कर णी पण जुदी जुदी जाणवी. ३७ नास्तिकः- घट पटादिक सर्व पदार्थोमां ईश्वर एकज , एम जाणवू जोये. आस्तिकः- जो सर्वमा एक ईश्वर होय तो जात, कुल, राजा, तथा चंडा लनी निन्नता कही न जोये; कोई श्रेष्ट तथा नष्ट कहेवाय नही. एक पुण्य करे ते नुं फल सर्वने थq जोये, तेमज कोईएक पाप करे तेनुं फल पण सर्वने थ, जो ये. एके नोजन कस्याथी सर्वनी तृप्ति थवी जोये: एक नरकगामी थयाथी सगला न रके जवाजोये; एक स्वर्गगामी थयाथी सर्व स्वर्गमां जवा जोये; एकनो नोग सर्वने जोगव्यो जोये: कर्म जुदां जुदां नोगवां न जोये; तेम तो देखातुं नथी; जे करे ते जोगवे एवं स्पष्ट देखाय जे. त्यारे सर्वमा एक ईश्वर केम कहेवाय? माटे एम क हे ते समीचीन नथी; बधा जीव जुदा जुदा , एम कहे योग्य जे. ३ए नास्तिकः-स्वर्ग, नरक, पुण्य, पाप, चंद, सूर्य, नदी, समुप, दीप, नर, नारी, नगर, ग्राम, तथा माता, पिता इत्यादिक चोराशी लद जीवयोनि प्रमु ख सर्व असत्य बे; एथोमां सत्य पदार्थ कोई नथी. आस्तिकः-सर्व पदार्थ सत्य बे. जलनी बुंद पण असत्य कहेवाय नही, तो स्वर्गादिक पदार्थो केम असत्य कहेवाय? जे वस्तु थाय त्यारे थई कहेवायडे, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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