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________________ १२ आस्तिक नास्तिक संवाद. | तेवो थाय . एतो एनो स्वनाव बे. तेम गुनागुन कर्मोने यद्यपि झान नथो, तोपण तेयोनो एवो स्वनावज , के फलरूपे पोते परिणामने पामवं. कर्मों नो एवो स्वनावजले के गुन कस्याथी पुण्यकर्म बंधाईने उत्तम गतिनी प्राप्ति थाय जे, तेमज अशुनविषे पण जाणी लेवु. एवो कोनो अनंत कालनो स्वनाव . वली जेम चमक पाहाण लोहने पोतानी तरफ खेंची लिये ले, तेनुं चमकने कांई पण ज्ञान नथी, के हुँ लोहन आकर्षण करूंबं: परंतु ते क्रिया स्वानाविक थाय बे. तेम जीव गुनागुन परिणामना उपयोगे गुनागुन कर्म आकर्षण करी था | त्मापणे लोलीनूत करे : एवो अनादि कालनो स्वनावज जे. एमां ईश्वरनुं कांई काम नथी. ___ २७ नास्तिकः- जीव एवो कोई पदार्थज नथी: बधुं शून्यज ले. त्यारे गुनाशुन कर्मो ते कोने लागवाना हता! ए बधो नर्म बे. जीव कोई वेज नही. आस्तिकः-नाई, तूं पाको बुझिनो देखाय ले. जीवनेज नराडी नाख्यो एटले बधी खटपट चूकी गई के नही वारु ! अरे मूढमति विचार तो कर, के जो शरीरमां जीव न होय, तो शरीरनी चेष्टा केम थई शके ? शरीर तो जम बे, तेमां चेतन शक्ति न होय तो क्रिया केम थाय? जो आत्मा न होय तो आ शरीर, हाय, पग, कान, नाक, जीन, अांख, मन, बुद्धि, धन, धान्य, राज्य, तथा संपत्ति प्रमुख सर्व पोताथी जुदा पदार्थोमां शरीर मारुं , धन मारूं , वगैरे एवो बोलनार कोण ! मारूं , एवं कहेनार पदार्थथी जुदो होय जे. एम तो कोई पण कहे तो नथी के ढुं शरीर , हुँ मन बूं वगैरे, माटे शरीरादिक सर्व वस्तुनो निन्न व्य वहार होवाथी जीव ले एवं ठरे ले शरीरमांथी जीव नीकली गया पडी विचार करवू, बोलवू, तथा चालवू वगैरे कांई पण क्रिया थई शकती नथी. तेथी शरीर थकी जीव जुदो कोईक जे एम नको जायजे. वली शरीरमां ज्यारे जीव डे त्यारे बोले , ने घट पटादिक पदार्थोमां जीव नथी त्यारे बोलता नथी. तेथी जीव व्य ते शरीर थकी निन्न डे एवं शिक्ष थयुं. तेने आज नही एम तुं केम माने ? जो जीव न होय तो व्यवहार केम चाले? माटे जीव अवश्य ले एम जाणवू. २७ नास्तिकः- जीव समय समयनेविषे नवो थाय ने. हमेश एक जीव रहे तो नथी. - आस्तिकः- ए वात तदन जुठी जे. जीवत्व नवं कोई समये यतुंज नथी. जीवना पर्याय इव्य, क्षेत्र, काल, नाव, तथा उदय नावाश्रित तो जुदा जुदा - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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