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प्रास्तिक नास्तिक संवाद.
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या स्तिकः -- जो एम होय, तो जन्म धारण करवामां मातापितानुं शुं काम विष खाधाथी मरण थाय बे, तेमां विषनुं सु वांक बे ? तेमज नो जनथी कुधानी निवृत्ति, पाणीथी तृपानी निवृत्ति, प्रमिथी शीतनिवृत्ति, व ली तापथी खेदोत्पत्ति, वर्षाथी धान्योत्पत्ति, पथी वैरोत्पत्ति, नम्रताथी स्नेहो त्पत्ति, चोरी करवायी ताडन, यारी थकी निर्लऊ, पापथकी नरक, पुण्ययकी स्वर्ग, इत्यादि सर्व कारणो ने कार्यो व्यर्थ थशे अने सर्व वस्तो स्वगुंण रहित कवी जो. राग करनारो स्नेही नही, तेम द्वेष करनारो वैरी नही कहेवाशे. न पकार प्रति उपकार करवानी कांई जरूर रहेशे नही. ने पाप पुण्य फलरहित A. केम के, सर्व कार्य करवानुं मूल कारण एक ईश्वर इवा थई, माटे सर्व ईश्व र बारूप बे, एम कहेतुं ते समीचीन नथी. तमारा कहेवा प्रमाणे पुण्य पापनुं कर्त्ता पण ईश्वर ने नोक्ता पण ईश्वर थयो. दोहा, ईश्वर इवारूप या कृत्य स जगमांहि एम कहे गुणता टले, सारासार न कांहि १८
२३ नास्तिकः-- यात्मा पंच नूतो थकी थयो बे; ए वात असत्य नथी, किंतु साची बे, एवं मने जगाय बे.
प्रास्तिकः - नूत शब्दनो अर्थ त्र कालमा अस्तित्व थाय बे. एटले जे बे बे ने बे, तेने नूत कहियें. नूतनो तो कोई काले बेद यतो नथी; माटे ए अस्तित्वरूप नूतनो अंश तो संनवे नही; तेम प्राकाशादिक पंच महानूतनो अंश पण कही शकायें नहीं. वली पांच नूतना अंशे करी शरीरनी उत्पत्ति थाय बे, त्यारे ज्ञान चेतना का अंशथी उत्पन्न थयां ? माटे नूत शब्द ए भ्रमजाल बे. अने चिदानंद ज्ञानरूप आत्मा तो शाश्वत बे. ते कोई समये जूनो तथा नवो यतो नथी. ते जीव पूर्वोपार्जित कर्मे करी शरीर बांधे बे. ते जल पुद्गलनुं ग्रहण बे. तेमां नूतनुं कांई प्रयोजन नथी; नूत केवी वस्तु बे ? जीव बे के जड़ बे ? रूपी बे के रूपी बे ? ईश्वराश्रित ले के नवा प्रगट थाय बे ? बता रूप बे के संयोगे या बे ? ए विषे कांई विचार करी शकातो नथी; माटे नूत ए शब्दज व्यर्थ बे. ते नाथी जीवनी उत्पत्ति केम मनाय ! दोहा, जीव ऊपजे नूतथी, ए मत बे जम रूप; जीव चिदानंद सत्य बे, अनादि नाव अनूप. १०
२४ नास्तिकः -- तमारा कह्या प्रमाणे जीवने नवांतर थाय बे. जवनी प्राप्ति क मीनुसार बे. जेवां कर्मों कस्यां होय तेवा नवनी प्राप्ति थाय बे. शुभ कर्मनुं फल सारो नव बे, घने गुन कर्मनुं फल नरशो जव बे. ते वात सत्य बे, परंतु को
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