SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आस्तिक नास्तिक संवाद.. रु करे ? ए नपरथी एवो निश्चय थाय ने के, ईश्वर सर्व व्यापक नथी. दोहा, व्याप क ईश्वर जे कहे, तेह न जाणे मर्म; जर्मे जूट्या सर्व मत, विना एक जिनधर्म.१० १३ नास्तिक:- ईश्वर सर्व व्यापक हो के न हो, तेनी साथे अमारे जरूर नथी: पण आ जगतनो अधिपति ईश्वर अने जगतरूप तेनुं ऐश्वर्य : तेथीज ईश्व रताने पाम्यो बे. जे श्वर्यवालो होय तेने ईश्वर कहिये. आस्तिकः- जगतनुं बाधिपत्य लेवानुं ईश्वरने शुं कारण हतुं ! अने जगत रूप जैश्वर्य पण तेने शासारु जोतुं हतुं ! झुं जगतनी उत्पत्तिनी पूर्वे ते औश्वर्य ने पाम्यो न हतो! ऐश्वर्यविना ईश्वरता संनवे नही. ए नपरथी जे जगतनी उत्प तिनी प्रर्वे अनीश्वर हतो. ते उत्पत्ति करीने ईश्वरताने पाम्यो : एवो तमारो आशय जणाय ने नही वारु ! पण ए बधुं खोटुंबे. ईश्वरनेविषे एवी कल्पना करवीज नही जोये. जुत्रो के, तमारा कहेवा प्रमाणेज जेम प्रजानी अपेदाये राजा कहेवाय जे, अथवा धननी अपेदाये धनाढ्य कहेवाय बे: तेम जगतनी अपेदाये ईश्वर कहेवाय जे. एटले जेवारे जगतने नपजावे तेवारे जगतनुं ईश्वर पणुं कहिये; एथी जगतनी पूर्वे ईश्वर न हतो एम थडे: अने जेवारे जगतनो प्रलय थाय त्यारे ईश्वरनो पण अनाव थई जवो जोये. जो ए वात कबूल करशो तो जे कोई कालमां होय ने कोई कालमा न होय ते क्षणिक कहेवाशे. जो क्षणिक मानशो तो बीजा घणा दोष प्राप्त थशे; माटे ईश्वरने जगतनो एवी रीते अधिपति कहेवो ते योग्य नथी. दोहा, अधिपति जगनो जे कहे, ईश्वरने मतवादि ; ते एकांत कनिष्ट ने, नत्तम अनेक वादि. ११ १४ नास्तिकः- आटला संवाद थया, तेश्रोमां ईश्वरर्नु यथार्थ कारणपणुं कोइए कह्यु नथी. जगतनी उत्पत्तिनी पूर्वे ईश्वरने एवो संकल्प थयो के, माझं सामर्थ्य प्रगट करूं; ए वात वेदमां कही जे. ते आवी रीतेः- 'एकोहं बदुष्यामि' एटले एक ढुं बहु रूपे थानंएवा कारणथी जगतनी उत्पत्ति करी जे; तेथी ईश्व रने कारण कह्यो . आस्तिकः-- पोतार्नु सामर्थ्य प्रगट करवानी इला तो तेने थाय के, जेनेविषे अज्ञान होय. ईश्वरतो सर्वज्ञ ले, ते गुं पोतानुं सामर्थ्य जाणतो नहोतो! मा रामां केटलुं सामर्थ्य , एवो जेने संशय होय, ते ईश्वर शानो! साधारण मनु | ष्य प्राणी पण पोतानु सामथ्र्य जाएग। शके ले, तो ईश्वर केम न जागी शके ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy