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________________ १७४ आस्तिक नास्तिक संवाद. जोये. माटे ईश्वरेबाथी जीवने कर्म बंध थाय जे; अने तेज प्रेरक वे एम जाणवू. आस्तिकः-लगारेक हास्य करीने बोले . ईश्वरे पोताना अंशरूप जीवने उत्पन्न कस्या के तेथी जीव ईश्वरनो अंश कहेवाय, ए उपरथी जीव तथा ईश्वरनो अंशांशीनाव संबंध तमारा कहेवा प्रमाणे ठरे ले. जो ईश्वर अंश जे एम मानीए,तो ईश्वरना जेवो जीव होवो जोये. केमके, अंशांअंशीमां नेद होतो नथी. तेथी ईश्वर नी पते जीव पण निर्मल ने, एम मानवं जोये. त्यारे एवा निर्मलस्वरूपी जीवने कर्म लगाडीने मलसहित करवानुं कारण झुंहतु! आपणे कोई शुभ वस्तु वाप रवाने अर्थे ज्यारे लावीए बैये, त्यारे जहांसुधी बने तहांसुधी तेने मलीन करवा देता नथी; अने स्वन्त राखवानो घणो प्रयत्न कस्या करीये बे. त्यारे पोताना अंश रूप जीवने जाणी जोईने मेल लगाडवू ए ईश्वरनेविषे संनवे नही. एम तो कोई साधारण मूर्ख मनुष्य पण करे नही, त्यारे ईश्वर ते तेम करे! अने जे पोता ना अंगनो तिरस्कार अथवा नाश करे ते आत्मघाती कहेवाय. तेम ईश्वरपण आत्मघाती कहेवाशे. कदाच तमे एम कहेशो के, ईश्वर पोते पण कर्मकलंकसहित ने त्यारे जे पोते कलंकसहित होय, ते बीजानो कलंक झुं मटाडी शकवानो हतो! अने ते ईश्वर पण शानो! माटे गमे तेवी मनकल्पना करीने निर्दोषी ईश्वरने दोष लागु करवो ए केटली मूर्खता ! माटे ईश्वरनी साथी कांई पण थतुं नथी. जे थाय ने ते कर्मयी थाय ने एम जाणवू. दोहा, कर्मबंध था जीवने, ईश्वर इबारूप; कहे एम ते मूर्ख , ईश अकीय अनूप. G ११ नास्तिकः-या जगतनी जे अभुत रचना देखाय , तेनो कर्ता कोई पण होवो जोये. केमके, एवी कति स्वानाविक थई शके नही. तेम कर्मादिक जड पदार्थोथी | पण जगतनी नुत्पत्ति संनवे नही. माटे जे जगतने नत्पन्न करे , तेनेज ईश्वर कहिये; अने एवी लोकवदंता पण बे, के जगत सर्व ईश्वर कृत्य . अस्तिकः-- जगतनो कर्ता ईश्वर होय, तो सर्व प्राणीमात्रनुं ईश्वर कारण थ यु. ने सर्व पदार्थो ईश्वरना कार्य थया. पिता जेम पुत्रनी उत्पत्ति करे ले तेमई श्वर सर्व प्राणी मात्रनी उत्पत्ति करे ले. त्यारे ईश्वर पितारूप अने सर्व पदार्थो पुत्ररूप मानवा जोये. पुत्रनी उपर पितानो प्यार होय ए स्वानाविक सि . तेम ईश्वर नो पण सर्वनी नपर प्यार होवो जोये. जो एम होय तो सर्व प्राणीमात्र सुखी होवा जोये. तेम तो दीवामां आवतुं नथी.कोई सुखी, कोई दुःखी, कोई पापी, कोई पुण्यवान, कोई नरकगामी, तथा कोई स्वर्गगामी वगैरे सर्व जीवो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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