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________________ १२ आस्तिक नास्तिक संवाद. टीना मिथकी पट थाय नही अने तंतुना पुंजयकी घट थाय नही. तेम अजीवथी जीव नत्पन्न थाय नही अने जीवथी अजीव उत्पन्न थाय नही. जे अचेतन होय तेने जड कहे जे अने जे चेतन होय तेने जीव कहे . ए बन्ने पदार्थ परस्पर स्वनावे अमिलित , तेम बतां जड वस्तुथकी जीवनी नत्पत्ति कहेवी, एना जेवी बीजी मूर्ख ता कई ! गुं कोईक एवो मसालो हशे के जो ते जड वस्तुमां पडे तो तेमाथी चेतन पेदा थाय ? एवी कांई चीज तमे शोधी कहाडी होय तो थमने देखमावो नी ! माटे ए अज्ञानरूप अंधारूं हृदयमांथी कहाडी नारखो, ने शुक्ष धर्मने अंगीकार करो. दोहा शुः धर्म जन जे लहे, ते पामे पद मोद:प्रगट वस्तुने मूकिने,कां जन ज्रमे परोक्ष नास्तिकः- स्वबंदीना जेवी मुखमुझ करीने बोलवा लाग्यो के, जीवने कर्म लागे डे के नही ? ए विषे विचार करवो जोइये. अमारा मतप्रमाणे जी वने कर्म लागतां नथी. __ आस्तिकः- तमे तो वली बधाना शिरताज थया जणाथो बो! पण कर्मविना काई बनतुंज नथी; एम मान्याविना चालशे नही. कर्मने तो सर्व अंगीकार करे बे,एमां कोई वांधो कहाडे एवं नथी. जो कमें न होय तो पापपुण्यनु फल थर्बु न जोश्ये: ते तो प्रत्यद दीगमां श्रावे : जेणे पाप कयुं ते फुःखी , ने जेणे पुण्य का ले ते सुरवी; वली जो एम होय तो, दान, ध्यान, स्नान त था पूजा प्रमुख जे सत्कर्म बे, ते सर्व मतवालाथो शासारु करे ? तमारा क ह्याप्रमाणे तेनुं फल तो कांई थनार नथी; पण ते शुन कमें जाएगीने लोको था दरे जे. ज्यारे कर्म नथी त्यारे जन्म धारण करवानुं हुं प्रयोजन ? माटे जोज न्ममरण तथा सुखरप , तो कर्म पण होवां जोश्ये. कर्म ले ते जीवने रज रूप ले. रागादिकथी बंधाय ने, ने जोगव्यापली बूटे जे. जहांलगि कर्म ने तहांल गि संसारी जीव कहेवाय ने, कर्मोनो क्ष्य थवाथी मुक्त थयो कहेवाय जे. माटे तमारे निश्चय मान जोश्ये ले के जीवने अवश्य कर्म लागे . दोहा, कर्मथकीआ जीवने, सुख दुःख सघलां थाय ; कृत्य शुनागुन जेहथी, शफल थया कहेवाय. नास्तिकः--तमे कहो बो के, जीव नवांतर थकी आवीने थाहिं नपजे . त्यारे एक नवनी वात बीजा नवमां केम करतो नथी ? जो नवांतर होय तो ते नीस्मृति जरूर थवी जोश्ये; ते तो कोईने पण यती नथी. त्यारे नवांतर जे एम शानपरथी समजाय? थास्तिकः-धागला नवनी स्मृति थती नथी ते उपरथी नवांतरनो धनाव ले ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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