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________________ प्रास्तिक नास्तिक संवाद. १८१ ने जगत वाशी जीव थयो. केमके सर्व मतमतांतर वाला परमपदनी वांडनाये पो तपोताना मार्गनी क्रिया करे बे. पोताना ग्रात्माने निर्लेपपणुं चाहे वे तो स्वमेव ईश्वरपद जन्म जरा मरण रहितपणुं पामीने वली जन्ममरण सहित उपाधिपं मादरे बे ? माटे ए तमारा वचन विरुद्ध जणाय बे. ५ नास्तिक:-- कांई नवी युक्ति कहाडीने बोले ते. या बीजायोनी मति तो मारी मग ते के बे. जीवने कोई शाश्वत कहे बे, ने कोई अशाश्वत कहे बे. वगैरे जेना मनमां जेम यावे बे ते तेम महोडेथी बोले बे. पण मर्म कोई जाए तो नयी यापणे प्रत्यक्ष अनुभव करेलुं बे ने यांखे देखीए बैए के जीव पदार्थ उत्प त्तिवान बे, ने कोईक समये तेनो अंत पण थाय बे. स्त्रीपुरुषनो संयोग थयाथी ते खोना रज तथा वीर्यथी माताना उदरनेविषे शरीररूप एक पिंम बंधाय बे, ने पी नियमित समये तेमां चेतना शक्ति खावे बे, तेने जीव कहे बे. वली शरीर कांई रो गादिकने वश मरण पामे बे, त्यारे जीव पण तेनी शाथे नाश थाय बे, ए प्रत्यक्ष ara a. हाथना कांकणने खारीचं शासारु जोये. माटे जीव पदार्थ कोईकानें न वो पेदा थाय बे, तेथीजीवनी यादि बे एम जलाय बे वास्तिक :- नाई, तुं तो वली बधाथी दाह्यो देखाय बे ! चेतननी उत्पत्ति तथा नाश संजवे नही. कर्मना वशे जीवने जन्मांतर थाय बे, तेथी नवुं शरीर धारण करे बे; पण जीव नवुं यतुं नथी. वली शरीरनो नाश थयाथी जीवनो नाश प यतो नथी. जीव तो बीजा शरीरने धारण करे बे. तेम बतां जो वधारे याग्रह करी श, तो या मारा प्रश्ननो उत्तर खाप के, जीव कई वस्तु पलटीने तेमांथी उत्पन्न था ? अथवा कई वस्तुनो परिणाम बे ? केमके कारण विना कार्यनी उत्पत्ति थाय नही वो नियम बे; एटनुं समजाव्या बतां पण जो नही मानीश, तो तुं पोते जीव नयी पण जड हो एवं वरशे. त्यारे जडनी साथे कोण माथाकूट करे ! ६ नास्तिकः - कदाच जड वस्तुनो परिणाम जीव ने जीवनो परिणाम जड यावे, एम कहीए तो कांई दोष यावे के ? घटितघटनापटीयशी माया बे, ते Hing in a माटे मे तो एम मानीए बैए के, जड वस्तु बदलीने तेथी जी वनी उत्पत्ति था . आस्तिकः - नाई, ए तमारुं बोलवं केवल अविचारनुं बे, एम तो कोई अज्ञानी प माननार नथी जे जड वस्तुथी जीवनी उत्पत्ति थाय; एक स्वनाववाला पदार्थ थी बीजा स्वनाववाला पदार्थोनी उत्पत्ति थाय नहीं एवो नियम बे. जेम के, मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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