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प्रास्तिक नास्तिक संवाद.
था नारा रहित बे; तो चेतनलक्षणवंत जीवने नूतथी उपनो कहिये ते युक्त नथी केमके पांच महानूतना अंसथी तो मात्र शरीरनी उत्पत्ति थाय बे.
प्रास्तिक:- ए वात पण कल्पित बे. यद्यपि जीवविषे तो तारा सारा विचार ज बे, तथापि जहांधी जिनोक्त वचनजन्य ज्ञान नथी ययुं, तहांशुधी सर्व मि ra. एक जीवने शाश्वत जाल्यो तेथी गुं ययुं ! कोई जाना मुखयकी नव कार प्रमुख जेवा तादृश्य अहरोनो अचानक उच्चार थाय तेथी गुंतेने तेना फ aal प्राप्ति थाय बे! तेम तें जीवने शाश्वत जाएयो तेथी शुं सम्यक्त ज्ञानवान क देवा ! कदी नही. ने शरीर पंच महाभूतो की उत्पन्न याय बे; एवं जे तें
युं ते सत्य बे. शरीरनी उत्पत्ति तो पुलथकी थाय बे. बीजा संवादमां प्रस्थया दिकनी उत्पत्ति महानूतथी कही ने ते पण मिय्यावे; केमके, अस्थि जे बे ते पृथ्वी नो अंश नयी, पण पृथ्वीना जेवा कठण वे: रुधीर बे तेजलनो अंस नथी, पण जल न पठे प्रवाही बिंधारा याय बे; जठराग्नि जे बे ते अग्निनो अंश नथी, पण अग्नीनीप ठे हम बे, शांखोश्वास जे बे ते वायुनो अंश नथी, पण वायुनी पठे पुरुषनो विका र; आकाश ते आकाश नाजन बे. तेम बतां शरीर पंचमहाभूतो की उत्पन्न या बे एम कहेशो तो ए पंचमहाभूतोमांना पृथ्वी, अप, तेज ने वायु ए नां शरीर शाथक उत्पन्न याय ले ? ए पृथ्व्यादिकपण जीवरूप बे: अने तेस्रो शरीर सहित बे. जेम काची माटी सजीवन ले माटेज तेमां वनस्पति उगे बे; यने जे कार नूनि जीव बे तेमां वनस्पति उत्पन्न यती नथी. तेमज ए पंच महानूत ते सर्व सजीव तथा निर्जीव ए बन्ने रूपें बे, माटे जो जगत उपजवानां कारण ए पांच महानूतने कहेशो तो पांचमहाभूत शाथ की पेदा थया कहेशो ? माटे एनाथी शरीर अथवा जगतनी उत्पत्ति संनवे नही. जीव ने जड ए बन्ने पदार्थोथी जग तनी प्रवर्त्ति ने एम जाणवुं. दोहा, यागम अगम अगाधकृत, ज्ञान लह्यो नर जे ह; बेशि वचन जिनकल्पतरु, जहे चाह फल तेह. ३
४ नास्तिकः -- जीव तो ईश्वरना अंशथकी उत्पन्न यायले एम जणाय बे. प्रास्तिक:-- जो ईश्वरमा अंशथकी जीव थाय बे तो ईश्वर पोते खखं रूप बे ते घटघटप्रते खंडखंड नावने पामशे. ईश्वर निर्लेप ने तो कर्मलेप सहित केमथाय बे? जन्मरोग जरारोग खने मरणरोग रहित बे ते जन्मादिक सहित केमथाय बे ? नि रावर ते सावरण केम थाय बे ? एहवो मूढतो जगतमां कोई नथी जे प्रधानपद मूकी अधमपद यादरे ! माटे परमेश्वरने एवी बुद्धि केम थई जे परमेश्वरपद मूकी
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