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________________ २६० शांतसुधारस. आर्यदेशस्टशामपि सुकुलजन्मनां॥ उर्लना विविदिषा धर्मतत्वे ॥र तपरिग्रहनयादारसंझावर्तिनि हंत मग्नं जगहुस्थितत्वे ॥ बु॥४॥ अर्थ ॥ जो था जगतमां प्राणी अनार्यदेशमां मनुष्यनव पाम्योतो उलटो अन र्थन कारणथाय केमके जीवहिंसादिक पापाश्रवना व्यसनवाला जीवोतो माधव ति जे सातमी नरकादिको तेना मार्गनुं कारण थाय ॥३॥ रूडाकुलमा जन्म पामेलो होय अनेवली आर्यदेशमा रहेनार होय तेनेपण धर्मतत्व जाणवानी श्वा थवीउनन कारणके रतके ० मैथुन परिग्रह नय अने अहार ए चार नामना 5 स्थितपणामां सर्वजगत बमोपडयोले ॥४॥ विविदिषायामपि श्रवणमतिउर्लनं धर्मशास्त्रस्य गुरुसन्निधाने ॥ वित यविकथादितत्तसावेशतो विविधविक्षेपमलिनेऽवधाने ॥ बु० ॥ ॥५॥ धर्ममाकर्ण्य संबुध्य तत्रोद्यम कुर्वतो वैरिवर्गोऽतरंगाराग पश्रमालस्यनिज्ञादिको बाधते निहतसुकृतप्रसंगः ॥ बु० ॥६॥ अर्थ ॥ कदाचकोइने धर्मतत्व जाणवानी बाहोय अने गुरुसंनिध बेठोहोय तोपण वृथा विकथारसना आवेशथी नानाप्रकारना विकेकरी जोतेनुअंतःकरण मलीन थयुंहोयतो धर्मशास्त्रोनुं श्रवण उर्जनहोय ॥ ५ ॥ वली जेप्राणी धर्मने सांजली धर्मनेपाम्यो अने धर्मनेविषे उद्योगपण करवाबेगे तेवा प्राणीनेपण पुण्य रूप प्रसंगना नाशकरनारा जे रागदेष श्रम आलस निश इत्यादिक अंतरंग शत्रु नो समूहले तेपीडाकरे तेथीतेने धर्मपाम उर्जनथाय ॥ ६ ॥ चतुरशीतावदो योनिलदेष्वियं क त्वया कर्णिता धर्मवाती ॥ प्राय शो जगति जनतां मियो विवदते झद्धिरसशातगुरुगौरवार्ता॥७॥ एवमतिउलनात्प्राप्य उर्लनतमं बोधिरत्नं सकलगुणनिधान।कुरु गुरु प्राज्यविनयप्रसादोदितं ॥ शांतरससरसपीयूपपानं ॥ बु० ॥७॥ ३० शांतसुधारसगेयकाव्ये बोधिनावनाविनावनो नामहादशःप्रकाशः अर्थ ॥ माटे अहोइति आश्चर्य हेजीव चोरासीलद जीवा योनीमां किहां पण तें धर्मनीवात सांजली हसेके अर्थात् नहीज सांजली हसे केमके घणुकरीने था जगतमा धिगारव रसगारव सातागारव एत्रण महोटा गारवेंकरी पीडायला लोकोतो परस्पर एकबीजा साथे वादकरे पणधर्मनी वातोसानली धर्ममार्गे प्रव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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