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________________ शांतसुधारस. १५ए शार्दूलविक्रीडितरत्त॥ यावदेहमिदं गदैर्न मृदितं नोवा जराजर्जरं याव त्वतकदंबकं स्वविषयझानावगाहदम॥ यावच्चायुरनंगुरं निजहिते ता व(धैर्यत्यतां कासारे स्फुटिते जले प्रचलिते पालिः कथं बध्यते ॥६॥ अर्थ ॥ जिहांसुधा श्राशरीर रोगाक्रांत थयोनथी तेमज जिहांसुधी थाशरीर जरायेंकरी जर्जरीनूतथयोनथी तथा जिहांसुधी था पांचंडियनो समूह पोतपोता ना विषयो लेवाने समर्थडे अने जिहांसुधी आयुष्य वीणथयुनथी तिहासुधी हेजीव तुं पोताना कल्याणविषे यत्नकर केमके तलोफुटीने पाणी बाहेर नीकली जसे तोपडे पालते केवी बांधीस ॥ ६ ॥ अनुष्टुत्तं ॥ विविधोपवं देहमायुश्च क्षणभंगुरं ॥ कामालंब्य धृति मढैः स्वश्रेयसि विलंब्यते ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ श्राशरीर नानाप्रकारना उपवेंकरी युक्त आयुष कणभंगुरले एमडता कोणमूर्ख तेनाउपर संतोष राखी पोताना कल्याणथवाना कार्यमा विलंब करे। ॥वादशनावनाष्टकं धनश्रीरागेणगीयते॥हीचेरेहीचेरेपीयाहिंडोलडेएदेशी॥ बुध्यतां बुध्यतां बोधिरतिलना ॥ जलधिजलपतितसुररत्नयु तया सम्यगाराध्यतां स्वदितमिद साध्यतां ॥ बाध्यताम धरगतिरात्मशक्त्या ॥ बु० ॥१॥ चक्रिनोज्यादिरिव न रनवो पुर्खनो भ्राम्यतां घोरसंसारकते ॥ बदुनिगोदादिका यस्थितिव्यायते ॥ मोहमिथ्यात्वमुखचोरलदे ॥ बु० ॥२॥ अर्थ ॥ जेम समुनापाणीमां पमोगयतुं चिंतामणीरत्न पागेहाथमा थावतुं अतिद्धन तेम बोधिपामवीपण अतिउर्लन माटेरूमीरीतें बोधिनुं धाराधनकरी पोतानुं हितसाधq बनेपोतानी शक्तीयेंकरी उर्गतिनो बाधकरवो ॥१॥ घणी नि गोदादिक कायस्थितियें करी विशाल अने मोह मिथ्यात्वप्रमुख लाखोगमे चोरटा ये युक्त एहवो आ घोर संसाररूप अरण्यमा फिरनारा जीवोने चक्रवर्तिना भोजन सरखो मनुष्य जन्म पामवो उर्लन ॥ २॥ लब्ध श्द नरनवो ऽनार्यदेशेषु यः स नवति प्रत्युतानर्थकारी ॥ जी वहिंसादिपापाश्रवव्यसनिनां माघवत्यादिमार्गानुसारी॥बु० ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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