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________________ अनुक्रमणिकाः रुति युक्त तथा संस्कृत, प्रारुत, मागधी, पैशाची. चलिका पैशाची, शौरसेनी, समसंस्कृत ने अपभ्रंश निन्न निन्न अने मिश्र कविनाम गर्न चक्र युक्त .. .. .. .. .. .. ... ४०-२६३ ५२ श्री महावीरस्तोत्र विविध वृत्तब अत्युत्तम चित्रादि काव्य चम कति युक्त यथा प्रतिलोमानुलोमपाद, अनुलोम प्रतिलोम, घईप्रतिलोमानु लोम, थईनम, मुरजबंध, गोमूत्रिका, सर्व तो नइ, रथपद, यदपाद, एकादरपाद, एकादश्लोक, थसंयोग, वान्यां खड़ संदानितकं, मुसल, त्रिशूल, हल, धनु ष्य, शर, शक्ति, अष्टदल कमल, षोडशदल कमल, स्तुत्यना मगर्न बीजपूर. हर, कविकाव्य नामक चक्र, तथा चामरबंध. ५३ श्री जीरापन्निपार्श्वस्तोत्र स्वागतावृत्तब विषम पदांत समपदाद्य त्र्यदर पुनरावृत्तिरूप सिंहावलोक काव्ययुक्त .. .. .. .. १५-१६ ५४ श्री फलवाई जिनस्तोत्र थार्यावृत्तब प्रत्येक पद्या चतुरक्षा रमक त्रयावृत्तिरूप यमकालंकारयुक्त .. .. .. .. .. .. १५-१९ए ५५ श्री चंप्रन स्वामिस्तोत्र मौक्तिक दामादिवृत्तबह षट्नाषा रच ना चमत्कृति युक्त यथा संस्कृत, प्राकृत, शोरसेनी, मागधी, पैशाचिक, चूलिका पैशाचिक, अपभ्रंश .. .. .. .. .. १२-२६ए ५६ श्री वर्षमान निर्वाण कल्याणक स्तोत्र स्वागतावृत्तबद्ध सर्वोत्कृष्ट वर्णन युक्त .. .. .. .. .. .. .. .. .. .. .. .. १०-२७१ ५७ श्री धरनाथस्तोत्र पंचदश केवलादर पद्यबर अभुत रचना युक्त १४--२७२ ५७ आध्यात्म मतपरिदानाम ग्रंयनी स्थूलविषयानुक्रमणिका. ७३ थाध्यात्मना चार प्रकार देखाडीने तेमा मात्र नाम श्रध्यात्मिजे दिगम्बर लोक तेमना मतनुं निवारण करतां नावाध्यात्मन स्वरूप दर्शावतां तथा साधुने वस्त्र पात्र उपधिप्रमुख ते सिम ताना हेतुने एवं अनेक दृष्टांतो सहीत प्रश्नोत्तररूपे सिमांतसै लिये प्रतिपाद्युठे तेने प्रसंगे ध्याननु स्वरूप स्थविरकल्प जिनकल्प तथा अपवाद उत्सर्ग इत्यादि .. .. .. .. .. १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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