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________________ 13 सूक्तमुक्तावली. संप्रति परे सुख पावो ॥ २७ ॥ अथ रागविषे ॥ इंश्वज्जा बंदः ।। रागे म राचे नव बंध जाणजे जाण ते राग वशे अनाणीगौरी तणे राग महेस रागीयर्धाग देवा नि जबुद्धिजागी ॥२॥ अथ षविषे ॥रेजीव विदेष मने म ाणे॥ विष संसार निदान जाणे ।। सासू नणंदे मिलि कूड कीबूं ॥ जूवं सुना शिर थाल दीडूं ॥३०॥ अथ संतोषविषे॥ वसंततिलका बंदः ॥ संतोष तृप्त जनने सुरख होय जेवू ॥ ते इव्य लुब्ध जनने सुख नाहि तेवू ॥ संतोषवंत जनने सद्ध लोक सेवे ॥ राजेंड रंक सरि खा करि जेह जोवे ॥३१॥अथ विवेकविषे॥ उपजाति बंदः ॥जो जेह चित्ते सुवि वेक नासे ॥ तो मोह अंधार विकार नाशे ॥ विवेक विज्ञानतणे प्रमाणे॥जीवादि जे वस्तु स्वनाव जाणे ॥ ३२ ॥ इंश्वजा बंदः॥ बाला पणे संयम योग धारी॥ वर्षाश्ते काचलि जेण तारी॥ श्रीवीरकेरो अयमन तेई ।। सुझान पाम्यो सु विवेक लेई ॥ ३३ ॥ अथ निर्वेद विषशार्दूलविक्रीडितबंदः॥जे बंधूजन कर्म बंधन जि सा, नोगा नुजंगा गिणे ॥ जाणंतो विषसारिखी विषयता, संसारता ते हणे ॥ जे सं सारह रागहेतु जनने, संसार नावा दुवे॥ नावो ते विरागवंत जनने, वैराग्यता दाखवे ॥३४॥ वसंततिलकाबंदः॥निर्वेद ते प्रबल उनर बंदिखाणो ॥जे बोडवा मनधरे बुध तेह जाणो। निर्वेदथी तजिय राज विवेक लीधो योगी नर्तहरि सं यम योग लोधो ॥३५॥ अथ आत्मबोधविषे॥ए मोहनींद तजि केवल बोध हेते॥ ते ध्यान शुरु झदि नावनि एक चित्ते ॥ ज्यूं निःप्रपंच निज ज्योति स्वरूप पावे ॥ निर्बोध जे अखय मोत सुखार्थ यावे ॥३६॥ मालिनी बंदः॥ नवि विषयतणा जे चंचला सौरव्य जाणी॥प्रियतम प्रिय योगा नंगुरा चित्त पाणी॥ करमदल खपे ई केवल ज्ञान लेई॥ धन धन नर तेई मोद साधे जिकई ॥ ३७ ॥ इति मोदव र्गः चतुर्थः समाप्तः ॥ ___ उपजाति वृत्तं ॥ इत्येवमुक्ता किल सूक्तमाला विनूषिता वर्गचतुष्टयेन ॥ तनोतु शोना मधिकं जनानां कंस्थिता मौक्तिकमालिकेव ॥१॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ आसीत्सगुणसिंधुपार्वणशशी श्रीमत्तपागलपः सूरिः श्रीविजयप्रनानिधगुरुर्बुध्या जित स्वर्गुरुः ॥ तत्पट्टोदयनूधरो विजयते नास्वानिवोद्यत्प्रनः सूरिश्रीविजयादिर नसुगुरुर्विजनानंदनूः ॥२॥ आर्यावृत्तं ।। विख्यातास्ताज्ये, प्राझाः श्रीशांतिवि मलनामानः॥ तत्सोदरा बनवुःप्राज्ञाः श्रीकनकविमलाव्हाः॥३॥ तेषामुनी विनेयो विधान कल्याणविमल इत्याव्हः।तत्सोदरोक्तिीयः केसरविमलानिधो ऽवरजः ॥४॥ || तेन चतुर्निवं गैं,रचितानाषानिबरुचिरेयं ॥ सूक्तानामिह माला, मनोविनोदाय | - । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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