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सूक्तमुक्तावली. तिर्यंचादि निगोद नारकितणी, जे योनि योनी रह्यां ॥ जीवे दुःख अनेक मुर्गतित गा, कर्मप्रनावे लह्यां ॥ या संयोग वियोग रोग बहुधा, या जन्म जन्मे उरखी ॥ ते संसार असार जाणि इहवो, जे ए तजे सो सुखी ॥ १४ ॥ इंश्वजा बंदः ॥जे हीन ते उत्तम जाति जाए ॥ जे उच्च ते मध्यम जाति थाए ॥ ज्यूं मोदमेतार्य मुनी जाए ॥ त्यूं मंगु सूरी पुरयद थाए ॥ १५ ॥ चतुर्थ एकत्वनावना पुण्ये अकेलो जिव स्वर्ग जाए ॥ पापे अकेलो जिव नर्क जाए ॥ ए जीव जा था व करेयकेलो॥ ए जाणिने ते ममता महेलो ॥१६॥ उपजाति वंदः॥ ए एकलो जी व कुटंब योगे॥ सुखी सुखी ते तस विप्रयोगे॥ स्त्री हाथ देखी वलयो अकेलो॥न मी प्रबोध्यो तिणथी वहेलो ॥१७॥ पंचम अन्यत्वनावना ॥ जो आपणो देहज ए न होई ॥ तो अन्यको थापण मित्त कोई ॥जे सर्व ते अन्य इहां नणीजे ॥ केहो ति हां हर्ष विषाद कीजे ॥ १७ ॥ देहादि जे जीवथकी अनेरां ॥ श्यो कुःख कीजे तस नासकेरां ॥ ते जाणिने वाघणिने प्रबोधी॥ सुकोसले स्वांगन सारकीधी॥१॥ अथ अशुचिनावना ॥ काया महा एह अचिताई ॥ जिहां नवकार वहे सदाई ॥ कस्तू रिकर्पूर सुव्य सोई ॥ ते काय संयोग मलीन होई ॥२०॥अशूचि देही नर नारि के। ॥ मराच जे ए मलमूत्र सेरी॥ए कारमी देह असार देख॥चतुर्थ चक्रिय पण ते उवेखी ॥२१॥सप्तमी याश्रवनावनामालिनीबंदः॥ इह यविरति मिथ्या योग पापादि साधे शण नण नव जीवा आश्वे कर्म बांधे ॥ करम जनक जेने आश्रवा जे न रुंधे ॥ स मर समय आत्मा संवरी सो प्रबुद्धे ॥२॥ इंश्वजाबंदः ।। जेकुंडरीके व्रतबांडि दी, नाश्त; तेवलि राज्य लीधुं।तेछुःख पाम्या नरके घणेरा।।तेहेतु एवाश्रवदोषकेरा।२३ अष्टमी संवरनावनाजे सर्वथाथाश्रवने निरुंधे। तेसंवरी संवरनाव साधे॥ ते नाववंदो गुरुवज स्वामी॥जेणे त्रिया कंचन कोडिवामी ॥२४॥ नवमीनिर्जरा नावना ॥मालिनी बंदः॥ज्यदस तपनेदे कर्म ए निर्जराए।उतपति थिति नाशे लोक नावा नराए।उरलन जग बोधीऽलना धर्मबुद्धानव हरणि विनावो नावना एहगुह॥२५॥नपजातिहंदः॥ बे निर्जरा काम सकाम तेही॥अकाम जे ते मरुदेवि जेही ॥ ते ज्ञानथी कर्मह निर्ज राजे ॥ दृढ प्रहारी परि तो तरीजे ॥२६॥ दशमी लोकनावना॥ मालिनी बंदः॥ जिम पुरुष विलोये ए अधो लोक तेवो ॥ तिरिय पण विराजे थाल स्योरस जे वो ॥ उरध मुरज जेवो लोकनाले प्रकास्यो ॥ तिमज नवन नानूं केवली ज्ञान नास्यो ॥ २७ ॥ एकादश बोधिदुर्खननावना ॥ स्वागता बंदः ॥ बोधि बीज लहि जेह अराधे ॥ ते श्लासुत परे शिव साधे ॥ धर्म नावन सही नवि जावो ॥ राय
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