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सूक्तमुक्तावली.
अथ मोदवर्ग प्रारंनः उपजातिबंदः ॥ ग्राह्याःकियंतः किल मोदवर्गे कर्मक्षयासंयमनावनाद्याः॥वि वेकनिर्वेद निजप्रबोधा इत्येवमेते प्रवरप्रसंगाः ॥ १ ॥ मोदार्थविषे मालिनी दः ॥ इह नव सुख हेते के प्रवर्ते नसेरा॥ परनव सुखदेते जे प्रवर्ते अनेरा ॥अव र अरथ मी मुक्ति पंथा अराधे ॥ परम पुरुष सोई जेह मोदार्थ साधे ॥ २॥ तजिय जरत केरी जेण वे खंड नूमी॥ शिवपथ जिण साध्यो सोलमे सांति सामी॥ गजमुनि सुप्रसिक्षा जेम प्रत्येक बुझा ॥ अवर अर्थ बंडी धन्य ते मोद लुहा॥३॥ अथ कमेविषे ॥ करम नृपति कोपे दुःख आपे घणेरा।। नरय तिरय केरा जन्म ज न्मे अनेरा ॥ गुन परिणति होवे जीवने कर्म तेवे ॥ सुरनरपतिकरी संपदा सो देवे ॥ ४ ॥ करम शशि कलंकी कर्म नितू पिनाकी ॥ करम बलि नरें प्रार्थना विष्णुरांकी ॥ करम वश विधाता इंश सूर्यादि होई ॥ सबल करम सोई, कर्म जेवो न कोई ॥ ५॥ अथ दमाविषे ॥ऽरित जर निवारे जे क्षमा कर्म वारे ॥ सकल तप सधारे पुन्य लक्ष्मी वधारे ॥ श्रुत सकल अराधे जे दमा मोद साधे ॥ जिण निज गुण वाधे ते दमा कां न साधे ॥ ६ ॥ सुगति लहि खिमाए खंध सूरास सोसा ॥ सुगति दृढ प्रहारे कूरग मुनीसा ॥ गज मुनिस खिमाए मु क्ति पंथा अराधे ॥ तिम सुगति खिमाए साधु मैतार्य साधे ॥ ७॥ अथ संयमविषे स्वागता बंद ॥ पूर्व कर्म सवि संयम वारे॥ जन्म वारिनिधि पार उतारे ॥ तेह संयम न केम धरीजे ॥ जेण मुक्ति रमणी वश कीजे ॥ ७ ॥ तुंग शैल बलदेव सुहायो॥ जे ण सिंह मृग बोध बतायो । तेम संयम लहीय अरायो। जेण पंचम सुरालय पायो ॥ ॥ अथ दादश नावनाविषे.॥तत्र प्रथम अनित्य नावना ॥मालिनी बंदाधरण कण तनु जीवी वीज जात्कार जेवी ॥ सुजन तरुण मैत्री स्वप्न जेवी गणेवी ॥ अहमत ममताए मूढता कांइ मार्च ॥ अथिर अरथ जागी एणशं कोण राचे ॥ १० ॥ धरणि तरु गिरिंदा देखिए नाव जेई॥ सुर धनुष परे ते नंगुरा नाव तेई इम त्दृदय विमासी कारमी देह बाया॥तजिय नरतराया चित्त योगे लगाया ॥११॥ वितीय असरण नावना ॥ परम पुरुष जेवा संहस्सा जे कृतांते ॥ अवर सरण के नुं लीजिये तेह अंते ॥ प्रिय सुत्द कुटंबा पाश बेठा जिकोई ॥ मरण समय राखे जीवने ते न कोई ॥ १२ ॥ सुर गण नर कोडी जे करे जास सेवा ॥ मरण नय न लूटा तेह इंज्ञादि देवा ॥ जगत जन हरंतो एम जाणी अनाथी ॥ व्रत ग्रहिय वि लूटो जेह संसारमाथी॥ १३ ॥ तृतीय संसार नावना ॥ शार्दूलविक्रीडितबंदः ॥
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