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और प्रतिनायक या खलनायक अनन्त संसार का पात्र बनता है । हरिभद्र ने प्रस्तावना की गाथाओं में बताया है कि गुणसेन और अग्निशर्मा के अनेक भव हैं, पर वे सभी उपयोगी नहीं हैं। यतः इन दोनों का संबंध नायक-प्रतिनायक के रूप में नौ चलता है।
गुणसे न-अग्निशर्मा, पिता और पुत्र के रूप में सिंह-पानन्द, पुत्र और माता के रूप में शिखि-जालिनी, पति और पत्नी के रूप में धन-धनश्री, सहोदर के रूप में जय-विजय, पति और भार्या के रूप में धरण-लक्ष्मी, चचेरे भाई के रूप में सेन-विषण, गुण-वानव्यन्तर एवं समरादित्य-गिरिसेन इस प्रकार नौ भवों को कथा इस कृति में वर्णित है। इसमें कथा के सभी गुण वर्तमान है।
धूर्ताख्यान
प्राचार्य हरिभद्र सूरि को व्यंग्य प्रधान रचना धूख्यिान है । इसमें पुराणों में वर्णित असंभव और अविश्वसनीय बातों का प्रत्याख्यान पांच धूर्तों की कथाओं के द्वारा किया गया है । भारतीय कथा साहित्य में इस ग्रन्थ का शैली की दृष्टि से मूर्धन्य स्थान है । लाक्षणिक शैली में इस प्रकार की अन्य रचना दिखलाई नहीं पड़ती है। यह सत्य है कि व्यंग्योपहास की इतनी पुष्ट रचना अन्यत्र शायद ही प्राप्त होगी। इनका व्यंग्य प्रहार ध्वंसात्मक नहीं, निर्माणात्मक है।
बताया गया है कि उज्जयिनी के पास एक सुरम्य उद्यान में ठग विद्या के पारंगत सैकड़ों धूर्तों के साथ मूलदेव, कंडरीक, एलाषाढ़, शश और खंडपाना ये पांच धूर्त नेता पहुंचे । इनमें प्रथम चार पुरुष थे और खंडपाना स्त्री थी। प्रत्येक पुरुष धूर्तराज के पांच
चर थ और खडपाना के पांच सौ स्त्री अनुचर। जिस समय ये लोग उद्यान में पहुंचे थे, घनघोर वर्षा हो रही थी। सभी धूर्त वर्षा की ठंढ से ठिठुरते और भूख से कुड़मड़ाते हुए व्यवसाय का कोई साधन न देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बारीबारी से पांचों नेता मंडली को अपने जीवन अनुभव सुनायें और जो धूर्त नेता उसको अविश्वसनीय और असत्य सिद्ध कर दे, वही सारी मंडली को एक दिन का भोजन कराये। और जो महाभारत, रामायण, पुराणादि के कथानकों से उसका समर्थन करते हुए उसकी सत्यता में सबको विश्वास दिला दे, वह सब धूर्तों का राजा बना दिया जाय। इस प्रस्ताव से सब सहमत हो गये और सभी ने रामायण, महाभारत तथा पुराणों की असंभव बातों का भंडाफोड़ करने के निमित्त कल्पित आख्यान सुनाये । खंडपाना ने अपनी चतुराई से एक सेठ द्वारा रत्नजटित मुद्रिका प्राप्त की और उसे बेचकर बाजार से खाद्य सामग्री खरीदी गई। सभी धूर्तों को भोजन कराया गया, जो भूख से कुड़ामुड़ा रहे थे और ठं से सिकुड़ रहे थे।
इस प्रकार कथाओं के माध्यम से अन्यापेक्षित शैली में हरिभद्र ने असंभव, मिथ्या और अकल्पनीय निन्द्य आचरण की ओर ले जाने वाली बातों का निराकरण कर स्वस्थ, सदाचारी और संभव पाख्यानों का निरूपण किया है।
अन्य लघुकथाएं दशवकालिक टीका में लगभग ३० महत्त्वपूर्ण प्राकृत कथाएं और उपदेशपद में लगभग ७० प्राकृत कथाएं आई हैं । आवश्यक वृत्ति टिप्पण में संस्कृत भाषा में लिखित कथाएं भी उपदेशप्रद और मनोरंजक हैं । हरिभद्र सूरि को प्राकृत लघु कथाओं का सौन्दर्य विश्लेषण हम आगे चलकर करेंगे। अतः यहां संक्षिप्त निर्देश ही किया जायगा।
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