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हरिभद्र शिष्यत्वेन वणितः । एवं पडीवालगगच्छीयायाम कस्यां प्राकृतपद्धावल्यामपि सिद्धषिहरिभद्रयोः समस-यत्तित्वलिखितं समुपलभ्यते" । इससे स्पष्ट है कि भवविरह हरिभद्र बहुत प्रसिद्ध है। इन्होंने स्वयं अपने आपको “याकिनी महत्तरा का पुत्र जिनमतानुसारी जिनदत्ताचार्य का शिष्यश्वेताम्बराचार्य कहा है । हरिभद्र के समय के संबंध में निम्न चार मान्यताएं प्रसिद्ध हैं :-- (१) परम्परा प्राप्त मान्यता--इसके अनुसार हरिभद्र का स्वर्गारोहण काल वि०
सं० ५८५ अर्थात् ई० सन् ५२७ माना जाता रहा है । (२) मुनिजिनविजय जी की- मान्यता-अन्तः और बाह्य प्रमाणों के आधार पर इन्होंने
ई० सन् ७००--७७० तक प्राचार्य हरिभद्र का काल निर्णय किया है ।। (३) प्रो० के० वी० पाभ्यंकर की मान्यता---इस मान्यता में प्राचार्य हरिभद्र का
समय वि० सं० ८००--६५० तक माना है । (४) पं० महेन्द्रकुमार जी की मान्यता--इस मान्यता में आचार्य हरिभद्र का समय
ई० सन् ७२० से ८१० तक माना गया है।
मनि जिनविजय जी ने आचार्य हरिभद्र के द्वारा उल्लिखित आचार्यों को नामावली दी है । इस नामावली में समय की दृष्टि से प्रमुख है--धर्मकीत्ति (६०० --६५०) धर्मपाल (६३५ ईस्वी), वाक्यपदीय के रचयिता भत हरि (६००-.-६५०), कुमारिल (ई० ६२० से लगभग ७०० तक), शुभगुप्त (६४०---७००) और शांतरक्षित (ई०७०५ से ७३२) । हरिभद्र के द्वारा उल्लिखित इन प्राचार्यों को नामावली से यही ज्ञात होता है कि हरिभद्र का समय ई० सन् ७०० के बाद होना चाहिए ।
हरिभद्र के पूर्व समय की सीमा ई० सन् ७०० के आसपास है । अतः वि० सं० ५८५ हरिभद्र के समय की पूर्व सीमा नहीं हो सकती है । विचारसार प्रकरण में आयी हुई "पंचसए पणसीए" गाथा का अर्थ एच० ए० शाह ने बताया है कि यहां विक्रम संवत् के स्थान पर गुप्त संवत् का ग्रहण होना चाहिए । गुप्त संवत् ५८५ शक सं० ७०७, वि० सं०, ८४३ और ईस्वी सन् ७८५ में पड़ता है । जिनसेन के हरिवंश के अनुसार गुप्त संवत् वीर निर्माण सं० ७२७, शक सं० १२२, वि० सं० २५७ और ई० सन् २०० में प्रारंभ हुआ । ऐसा मानने पर प्राचार्य हरिभद्र का स्वर्गारोहण काल ई० सं० ७८५ पाता है । ___ यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ति के अनुसार वीर निर्वाण के ४६१ वर्ष व्यतीत होने पर शक नरेन्द्र (विक्रमादित्य) उत्पन्न हुआ। इस वंश के राज्यकाल का प्रमाण २४२ वर्ष है
१--हरिभद्राचार्यस्य समय निर्णयः पृ०७ । २-- प्राव० सूत्रटीका प्रशस्ति । ३--(क) पंचसए पणसीए विक्कम कालाऊ झत्ति अत्थमिग्रो ।
हरिभद्र सूरिसूरो भवियाण दिसऊ कल्लाणं ।। सेसतुंग-विचारश्रेणि (ख) पंचसए पणसीए विक्कमभूपाल झत्ति अत्थमित्रो ।
हरिभद्र सूरिसूरो धम्मरो देउ मुक्खसुहं ।-प्रद्युम्न विचा०गा० ५३२ । ४-.-हरिभद्रस्य समयनिर्णयः पृ० १७ । ५--विशविशिका की प्रस्तावना । ६--सिद्धिविनिश्चयटीका की प्र० पृ० ५२ ।
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