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________________ २८ ( प्राकृत कथासाहित्य में ही नहीं, अपितु समस्त जैन कथावाङ्मय में आरम्भ में सठ शलाका पुरुषों के सामूहिक चरित्र, पश्चात् इन शलाका पुरुषों में से किसी एक महापुरुष के कथासूत्र को अवलम्बित कर और फिर उसमें उसके पूर्वभव के वृत्तान्तों की सूचक कथाएं एवं वं सी ही अन्य संबंधों की सूचक कथाएं जोड़-जोड़कर, उन उन महापुरुषों के नाम के स्वतंत्र चरित ग्रंथ लिखे गये । पौराणिक शैली से भिन्न आख्यायिका पद्धति पर किसी एक लोक प्रसिद्ध स्त्री अथवा पुरुष की जीवन घटना को केन्द्र मानकर, उसके वर्णन को काव्यमय शैली में श्रृंगार, करुण आदि रसों से अलंकृत करके अन्त में वैराग्य दिखलाने वाले कथाग्रन्थ लिखे गये । कथा के विस्तार को बढ़ाने की दृष्टि से उसमें मुख्य नायक या नायिका के साथ अनेक उपनायक- उपनायिकाओं के कथावर्णन जोड़े और फिर उन सबके पूर्व जन्म या आगामी जन्म का परस्पर संबंध बताकर उस व्यक्ति के किये गये शुभाशुभ कर्मों के फल का परिणाम दिखाया गया । यद्यपि आख्यायिका शैली का सम्यक विकास हरिभद्र से ही होता है, तो भी तरंगवती में इस शैली के सभी गुण मिल जाते हैं । इसमें श्रृंगारादि विविध रसों एवं काव्य चमत्कृति द्योतक नाना प्रकार के अलंकारों का पूरा जमघट है । पूर्वभव का घटना जाल भी जन्म-जन्मान्तरों की अनेक घटनाओं को समेटे हुए वर्तमान है । / धार्मिक कथाओं में रोमान्सवादी कथात्मक रूप, विन्यास का पुट, पौराणिक और अर्ध - ऐतिहासिक प्रबन्धों की रचना आदि के प्रवर्तनों का श्रेय भी दायित्व के उन्हीं नये मोड़ों के अन्तर्गत है । अर्द्ध ऐतिहासिकता प्रत्येक साहित्य-विद्या में चरित्रों को विविधता और संस्कार युक्तता के लिये धरती देती है, क्योंकि उसमें सामन्तों, संतों, राजकुमारों और व्यापारियों के रूप में सुथरे चरित्रों के रूप सहज में मिल जाते हैं । पहले का रास्ता छोड़कर नये रास्ते पर चलने की प्रकृति भी दायित्व-चेतना की मोड़ का आधार है । विशुद्ध लोककथा ग्रन्थ वसुदेवहिडी में लोक जीवन का इतना सुन्दर चित्रण और निरूपण हुआ है कि उसके संक्षिप्त कथानक उत्तरकालीन आख्यायिकाओं के लिये आधार बन गये हैं । प्राकृत और संस्कृत की अनेक कथाओं के मूलाधार वसुदे वहिण्डी के कथानक हैं । इस युग में कथाओं के संकलन की प्रवृत्ति तथा लोककथाओं को अभिजात्य साहित्य का रूप देने की परम्परा भी प्रचलित हो गयी थी । वसुदे वहिण्डी में (कल्पना का विलक्षण प्रयोग दृष्टिगोचर होता है । इसमें ( अद्भुत कन्याओं और उनके साहसी प्रेमियों, राजाओं और नागरों, राजतन्त्र एवं षड्यन्त्र, जादू और टोन, छल और कपट, हत्या और युद्ध, यक्ष और प्रेत, पशु-पक्षियों की सत्य और गढ़ी हुई कथाएं, भिखमंगे, जुआरी, आखेट, वेश्याएं और कुट्टिनियों की मनोरंजक कथाएं अंकित हैं, जो आगामी कथासाहित्य के लिए भी सैकड़ों प्रकार के उपादान प्रस्तुत करती हैं। पुरुष और स्त्रियों के स्वभाव विश्लेषण में इन प्राकृत कथाओं में अनेक तत्त्व उपलब्ध हैं । जिस प्रकार बरसाती नदियों की मटमैली धाराओं के ऊपर चारों ओर का खर-पतवार आकर बहने लगता है, उसी प्रकार वसुदेव हिण्डी में समाज की बुराइयों को समेट कर सामने उपस्थित किया है । (मनोविनोदकारक, भयानक अथवा प्रेम-संबंधी अनेक दृश्यों को प्रस्तुत करना भी इस युग के प्राकृत कथासाहित्य की एक उपलब्धि है ।) इस युग के प्राकृत कथासाहित्य की एक नयी उपलब्धि है मनोरंजन -- विशुद्ध रूप में स्वीकार्य मनोरंजन | मनोरंजन कथा का गुण नहीं उपलब्धि है । नये दायित्व का बोध अगर इस युग की कथा का गुण है तो मनोरंजन इसकी उपलब्धि । ) वसुदे वहिण्डी की रचना मनोरंजन के लिए एक सार्थक और ग्रहणशील आधार देती है, जिससे हम (कहीं भी बैठकर इन कथाओं से अपना मनोरंजन कर सकते हैं । लोककथाओं की रचना होने के कारण इस युग की कथाओं की एक उपलब्धि मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्द्धन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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