________________
२५
लिए अरह मित्र की कथा', दंशमशक परीषह के लिए चम्पा नगरी के राजा जितशत्रु के पुत्र श्रमणभद्र को कथा', अरति परीषह के लिए अपराजित और राधाचार्य की कथा', स्त्री परीषह के लिए वररुचि और शकटाल को कथा, चर्या परीषह के लिए कोल्लदूर नगर के प्राचार्यों को कथा', शय्या परीषह के लिए सोमदत्त-सोमदेव की कथा, आक्रोश परीषह के लिए अर्जुन माली की कथा', वध परीषह के लिए स्कन्दक की कथा', याचना परीषह के लिए द्वारावती विनाश कथा', अलाभ परीषह के लिए पराशर गृहपति को कथा, रोग परीषह के लिए कालवे सिय कथा", तृणस्पर्श परीषह के लिए श्रावस्ती नगर के राजा जितशत्रु के पुत्र भद्र की कथा, मल परीषह के लिए सुनन्द को कथा, सत्कार-पुरस्कार परीषह के लिए इन्द्रदत्त पुरोहित की कथा", प्रज्ञा परीषह के लिए आर्य कालक की कथा", अज्ञान परीषह के लिए गंगा किनारे प्रवजित दो भाइयों को कथा एवं प्रदर्शन परीषह के लिए अज्जासाढ़ा नामक प्राचार्य की कथा वर्णित है। ये कथाएं इतनी स्वतंत्र है कि इनका संकलन पृथक् किया जा सकता है, एक कथा का दूसरी कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है। __ तृतीय अध्ययन को टीका में मनुष्य भव की दुर्लभता दिखलाने के लिए चोल्लग, पासग आदि वस दृष्टान्त दिये गये हैं। इनमें ब्रह्म नपति, चाणक्य और मूलदेव की कथाएं प्रायी हैं। श्रद्धा की दुर्लभता दिखलाने के लिए जमाली की कथा वर्णित है। चतर्थ अध्ययन के प्रारम्भ में ही वद्धावस्था किसी को भी नहीं छोड़ सकती है, प्राणिमात्र को वार्धक्य का कष्ट उठाना पड़ता है, की सिद्धि के लिए अट्टनोमल्ल२ की कथा अंकित है। इसी अध्ययन में प्रमाद त्याग एवं सजग रहने के लिए अगडदत्त की रोमाण्टिक कथा वर्णित है। चतुर्थ अध्ययन को टीका में ही शरीर प्राप्त कर प्रतिबुद्ध
१- सु० टी० गा० ६ पृ० २१ । २--वही, ११, पृ० २२ । ३--वही, १५.१०२५। ४--वही, १७, पृ०२८ । ५--वही, १६, पृ० ३२ । ६--वही, २३, पृ० ३४ । ७--वही, ३५, पृ० ३५। ८-~वही, २७, पृ० ३६ । ६--वही, २६, पृ० ३७ । १०--वही, ३१, पृ०४५। ११--वही,३३, प०४७। १२--वही, ३५, पृ० ५७ । १३--वही, ३७, पृ०४८ । १४.--वही, ३६, पृ० ४६ । १५--वही, ४१, पृ० ५० । १६--सु० टी० गा० ४३, पृ० ५१। . १७--सु० टी० गा० ४५, पृ० ५२ । १८--सु० टी० अ० प्रा० १, पृ० ५६-५७ । १६--वही। २०.-वही,५ "६। २१--सु० टी०, पृ० १७ । २२--सु० टी०, पृ०७८ । २३--वही, पृ० ८४।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org