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________________ २४ परीक्षा', बहरों का संवाद, रानी चेलना' श्रादि कथाएं वर्णित हैं । ये सभी कथाएं बड़ी मनोरंजक और उपदेशप्रद हैं । भिखारी का सपना आज भी लोक प्रचलित है । "शेखचिल्ली" के सपने के नाम से यह लोक कथा भारत के कोने-कोने में व्याप्त हैं। बताया गया है कि एक बार कोई भूखा भिखारी किसी गोशाला में गया। वहां उसे भरपेट दूध पीने को मिला। दो चार दिन के अनन्तर वह भिखारी पुनः उसी गोशाला में पहुंचा। अबकी बार उसे एक हांड़ी भरकर दूध मिला। वह उस हांड़ी को लेकर प्रसन्न होता हुआ घर आया । खाट के नीचे हांड़ी रखकर वह लेट गया । लेटे-लेटे वह सोचने लगा--" इस दूध का में दही जमाऊंगा, दही बेचकर मुर्गी खरीदूंगा । मुर्गी अंडे देगी और उन अंडों को बेचकर में बकरी खरीदूंगा । बकरी के बच्चे होंगे और उन्हें बेचकर मैं गाय खरीदूंगा । गाय बहुत बछड़े देगी, वे बछड़े बड़े होने पर बैल हो जायेंगे। उन बैलों को बेचने पर में बहुत बड़ा धनी बन जाऊंगा। पश्चात् मेरा विवाह हो जायगा, मेरी पत्नी मेरी श्राज्ञानुसार कार्य करेगी। यदि कदाचित् वह कुलमद क कारण मेरी श्राज्ञा का उल्लंघन करेगी, तो में उसे लात से मारा करूंगा ।" बस खाट पर लेटे-लेटे भिखारी ने आवेश में श्राकर अपनी पत्नी को मारने के लिए लात उठायी, तो वह दूध की हांड़ी में जाकर लगी और हांड़ी का सब दूध जमीन पर गिर गया । उत्तराध्ययन की सुखबोध टीका में छोटी-बड़ी सभी मिलकर लगभग एक सौ पच्चीस प्राकृत कथाएं वर्णित हैं । इस टीका के रचयिता वृहत् गच्छीय आचार्य नेमिचन्द्र हैं । इनका दूसरा नाम देवेन्द्र गणि है । ( इन कथाओं में रोमांस, परम्परा प्रचलित मनोरंजक वृत्तान्त, जीव-जन्तु कथाएं, जैन साधुनों के प्राचार का महत्व प्रतिपादन करने वाली कथाएं, नीति उपदेशात्मक कथाएं एवं ऐसी कथाएं भी गुम्फित हैं, जिनमें किसी राजकुमारी का बानरी बन जाना, किसी राजकुमार का हाथी द्वारा जंगल में भगाकर ले जाना, पंचाधिवासितों के द्वारा राजा का वरण करना आदि वर्णित हैं । कल्पना के पंखों का सहारा लेकर कथा-लेखक ने बुद्धि और राग को प्रसारित करने की पूरी चेष्टा की है और अपने कथानकों को पूर्णतया चमत्कारी बनाया है । हास्य और व्यंग्य की भी कमी नहीं है ।) | सुखबोध टीका की अधिकांश कथानों में पात्रों को चारित्रिक विशेषताएं सामने नहीं श्रात, मात्र घटनाएं और वृत्तान्तों के चमत्कार ही आकर्षित करते हैं । कथानकों में उपदेश, मनोरंजन और वैविध्य पाठक के मन को उलझाये रखने के लिए पूर्ण सक्षम हैं । कथानक संक्षिप्त और विस्तृत दोनों ही प्रकार के मिलते हैं । उपमानों और दृष्टान्त कथानों में घटनाओं के कुछ मर्मस्थल हो उपस्थित होते हैं, पर ये कथानों के विकास और विस्तार की पूरी झलक दिखला देते हैं । कुतूहल जगाने के लिए कथाओंों के प्रस्तावना भाग कुछ विस्तृत दिखलायी पड़ते हैं । इन कथाओं में संवाद तत्त्व की कमी है । उत्तराध्ययन के द्वितीय अध्ययन की टीका में क्षुधा परीषह के उदाहरण में हस्ति मित्र गृहस्थ' की कथा, तृषा परीषह के स्पष्टीकरण के लिए धनमित्र और धनशर्मा की कथा, शीत परीषह के लिए राजगृह निवासी चार मित्रों की कथा, उष्ण परीषह के १ - बृह० क० भा० पी०, पृ० ८० । २ --- बृह० क० भा० पी०, पृ० २३ । ३- - बृह० क० भा० पी०, पृ० ५७ । ४ -- देखें हरिभद्रोत्तर कालीन कथाओं में महावीर चरिय के रचयिता का परिचय । ५ -- सुखबोध टीका गा० ३, पृ० १८ । ६- सु० बो० टी० गा० ५, पृ० १६ । ७- सु० बी० टी० गा० ७, पृ० २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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