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________________ व्यवसायी कृतपुण्य' आदि एवं लौकिक कथाओं में लालचबुरी बलाय, पंडित कौन', कोक्कास बढ़ई, चतुर रोहक', चतुराई का मूल्य, पढ़ो और गुनो भी एवं इतना बड़ा लड्डु आदि कथाएं शामिल हैं । (श्रावश्यक चूर्ण में आयी हुई लोक कथाओं के स्रोत पंचतंत्र, हितोपदेश और कथासरित्सागर में उपलब्ध हैं ) मूलसर्वस्तिवाद के विजयवस्तु तथा महा - उम्मग्गजातक में "लालच बुरी बलाय " तथा "पढ़ो और गुनो भी" के सूत्र मिल जाते हैं । ऐतिहासिक, अर्ध- ऐतिहासिक और धर्मकथाओं के सूत्र इतिहास और श्रागम में प्राप्त हैं । "लालच बुरी बलाय" में एक गीदड़ की लोभ प्रवृत्ति का फल दिखलाया गया है जिसने मृत हाथी, शिकारी और सर्प के रहने पर भी धनुष की डोरी को खाने की चेष्टा की और फलस्वरूप वह डोरी टूटकर तालू में लग जाने से वहीं ढेर हो गया । " पंडित कौन ?" में एक तोते की सुन्दर कथा है । २२ आवश्यक चूर्ण में प्रायी हुई सभी कथाएं सरस और मनोरंजन हैं। इनमें अधिकांश ऐसी कथाएं हैं, जो आज भी किसी न किसी रूप में लोक में प्रचलित हैं । " किस्सा गोई" इतनी बड़ी हुई हैं कि कतिपय कथाएं धरती की अपेक्षा आकाश से ज्यादा सम्बन्ध रखती हैं। नीति और उपदेश प्रत्येक कथा में निहित है । इन लघु कथाओंों के कथानक पर्याप्त मांसल हैं । ऐतिहासिक और अर्ध- ऐतिहासिक कथाओं में कल्पना और ऐतिहासिक तथ्यों का समुचित संतुलन है 1) १११२ दशकालिक चूर्ण में "ईर्ष्या मत करो "० " अपना-अपना पुरुषार्थ" और " गीदड़ की राजनीति अच्छी लोककथाएं हैं। " ईर्ष्या मत करो" में एक ईष्यालु वृद्धा का चित्रण हैं, जो पड़ोसी के सर्वनाश के लिए अपना भी सर्वनाश करती हैं । " अपने - अपने पुरुषार्थ " में चार मित्रों की कथा वर्णित हैं, जो परदेश में जाकर अपने-अपने भाग्य और पुरुषार्थ से सम्मान तथा धन प्राप्त करते हैं । (इस कथा में संयोग तत्व की अभिव्यंजना भी सुन्दर हुई है। लोक कथा के प्रायः सभी तत्त्व निहित है " गीदड़ की राजनीति" में बताया गया है कि जंगली पशुत्रों में श्रृंगाल कितना चतुर होता है । वह अपनी बुद्धि के प्रभाव से सिंह जैसे पराक्रमी और हाथी जैसे विशाल पशु को भी अधीन कर लेता है । कुशलता इसी बात में हैं कि अपने से निर्बल, तुल्यबल और सबल को अपने अधीन कर लिया जाय । १- प्रा० चू० पृ० ४६७ । १-- ० चू० पृ० १६६ । ३-- प्रा० चू० पृ० ५२२ । ४ - आ० चू० पृ० ५४० । ५- प्रा० चू० पृ० ५४४ । ६--आ० चू० पृ० २, ५७-६० । ७- प्रा० चू० पृ० ५५३ । ८. प्रा० चू० पृ० ५४६ । ६--दो 'हजार वर्ष पुरानी कहानियां, पृ० २१ । १० --- दश० चू० पृ० ६८ । ११ -- दश ० चू० पृ० १०३ - १०४ । १२- दश ० चू० पृ० १०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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