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(२) टीकायुगीन प्राकृत कथाएं
नियुक्ति साहित्य भी विशाल है । दस श्रागम ग्रंथों पर नियुक्तियां उपलब्ध हैं" । पिण्ड, ध और प्राराधना जैसी कुछ स्वतंत्र नियुक्तियां भी हैं। स्वतंत्र नियुक्तियों में प्रथम दो दशवैकालिक और आवश्यक निर्युक्ति की पूरक है। तृतीय का उल्लेख मूलाचार में मिलता है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन नियुक्तियों में निजधरी कथाएं मात्र कथात्मक वातावरण हो उपस्थित करती हैं । कथासाहित्य की दृष्टि से नियुक्तियों में उतनी सामग्री नहीं हैं, जितनी भाष्य और टीकाओं में हैं । चूर्णियों में भी व्याख्या और विवरण के साथ सुन्दर कथाएं उपलब्ध हैं । अतः प्राकृत कथाओं का टीकायुगीन मानचित्र उपस्थित करने के लिए चूणिभाष्य और टीकाओं का ही अवलम्बन लेना अधिक श्रेयस्कर होगा । श्रावश्यक चूर्णि और दशवं कालिक की कथाएं तो इतनी लोकप्रिय हैं कि उनका पृथक् संस्करण प्रकाशित हो चुका है । यद्यपि टीका ग्रंथों में संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं में ही कथाएं आती हैं, पर हमारा अध्ययनीय विषय प्राकृत कथासाहित्य हैं, अतः हम उसी की चर्चा करेंगे ।
प्राकृत कथासाहित्य की दृष्टि से श्रावश्यक चूर्णि सूत्रकृतांग चूणि, निशीथ चूर्णि और दशवेकालिक चूर्णि बहुत समृद्धशाली हैं । आवश्यक चूर्णि में ऐतिहासिक, अर्धऐतिहासिक, धार्मिक और लौकिक प्रादि कई प्रकार की कथाएं उपलब्ध हैं । ऐतिहासिक कथाओं में प्रमुख रूप से राजा शालिवाहन की नभोवाहन पर विजय, महावीर की प्रथम शिष्या चन्दनबाला', श्रेणिक और चेलना का विवाह, कूटनीतिज्ञ चाणक्य आदि; अर्ध ऐतिहासिक में रानी मृगावती का कौशल, राजा उदयन और प्रद्योत का युद्ध, राजा करण्डु", कल्पक की चतुराई" आदि; धार्मिक कथाओं में वल्कल चोरी", ऋषिकुमार, धूर्तवणिक",
१- डा० उपाध्ये द्वारा सम्पादित बृहत्कथा कोष का “इन्ट्रोडक्शन" पृ०, ३१ । २ -- प्रराहणणिज्जत्ती मरणविभत्ती य संगहत्थुदि ।
पच्चक्खाणावासय धम्मका य एरिस ।। मूलाचार ग्र० ५, गाथा २७६ ॥ ३ - - दशव कालिक सूत्र एण्ड निर्युक्ति जेड- डी० एम०जी, ४६ लीपजिंग १८६२ । ४ - प्रावश्यक चूर्णि का रचनाकाल सातवीं शताब्दी है ।
५ - - आवश्यक चूर्णि २, पृष्ठ २०१ ।
६- प्रा० चू० पृ० ३१६-२० । ७-- प्रा० चू० २, पृ० १६४ । ८-० चू० पृ० ५६३-५६५ । ६--आ० चू० पृ० ८७ - ६१ । १०--आ० चू० पृ० १६६ । ११ - ० चू० २, पृ० २०४-७ ॥ १२- ० चू० २, पृ० १८० - १८२ । १३ -- प्रा० चू० पृ० ४५६ ।
१४ -- ० चू० पृ० ५३१ ।
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