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पर भी सम्यक्त्व के प्रभाव में भाव श्रमण नहीं बन सके । शिवभूति' मुनि को तुषभाष के वास्तविक ज्ञान से केवलज्ञान की प्राप्ति हुई ।
तिलोयपण्णत्ति में त्रेसठ शलाका पुरुषों की जीवनी के सम्बन्ध में मूलभूत प्रामाणिक सामग्री प्रायी है। चरितों के विकास के लिए यही सामग्री प्राधार है । बट्टकर के मूलाचार में भी एक आख्यान आया है, जिसमें महेन्द्रदत्त द्वारा एक ही दिन में मिथिला में कनकलता प्रादि स्त्रियों की और सागरक आदि पुरुषों की हत्या करने का उल्लेख है। शिवार्य की मूलाराधना में भी सुरत की महादेवी, गोरसंदीव मुनि और सुभग ग्वाला आदि के सुन्दर कथानक है।
(इस प्रकार आगमिक प्राकृत कथा-साहित्य में उपमान, रूपक, प्रतीक और व्यक्तिवाचक नाम जो कि कथाओं के मूल उपादान है, प्राप्त है। इसमें उपासकदशा और नायाधम्म कहानो जैसी विकसित कथाकृतियां भी उपलब्ध है।)
१-भावप्राभतम्, गा० ५३ । २--ति० प० च० अधि० गा० ५१५-१४९८-माता पिता नाम, जन्मतिथि, जन्मनक्षत्र,
जन्मनगरी एवं जीवन के प्रमुख कार्यो की विवेचना उपलब्ध है। ३-कणयलदा णागलदा विज्जुलदा तहेव कुंदलदा ।
एदा विय तेण हदा मिथिलाणयरिए महिंददत्तण ।। सायरगो बल्लहगो कुलदत्तो बड्ढमाणगो चेव । दिवसेणिक्केण हदा मिहिलाए महिंददत्तण ।।
--मूला० २। ८६-८७ । ४--मूलाराधना अ० ६ गा० १०६१, ६१५, ७५६ ।
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