SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ (कथासाहित्य की दृष्टि से इसमें कथा के विशेष गुण वर्तमान नहीं हैं। हां, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इसमें कथासूत्रों की कमी नहीं है ) ___कल्पिका में अजातशत्रु के दस सौतेले भाइयों और उनके नाना वैशाली नरेश चेटक के बीच हुए युद्धों का वर्णन है ।। अजातशत्रु के जीवन के कई पहलू इसमें अंकित हैं। नौवें उपांग कल्पावतंसक में नरकगत उन राजकुमारों के पुत्रों की कथाएं है, जिन्हें सत्कर्म के कारण स्वर्ग प्राप्त हया है। इन सभी कथानों में जन्म और कर्म की सन्ततिमात्र ही उल्लिखित है ।) ग्यारहवें उपांग पुष्पचूला में भगवान महावीर की पूजा के लिए पुष्पक विमानों पर पानेवाले देवी-देवताओं के पूर्व जन्म की कथाएं अंकित है। अन्तिम उपांग वृष्णिदशा में अरिष्टनेमि द्वारा वृष्णि कुमारों को जैनधर्म में दीक्षित होने की कथाएं वर्णित है। (छेद सूत्रों में कल्पसूत्र कथासाहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसमें भगवान महावीर की जीवनगाथा के साथ अन्य तीर्थ करों के जीवन-सूत्र भी उपलब्ध है। निरयावली में कुणिक, श्रेणिक और चेलना के पुत्रों की जीवनगाथाएं उल्लिखित है। प्रसंगवश इसमें कपित्थ, सोमिल्ल, सुभद्रा, पुष्पचूला आदि की कथाएं भी आयी है। (मूलसूत्रों में उत्तराध्ययन प्राख्यान साहित्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें भावपूर्ण एवं शिक्षापूर्ण कई पाख्यान सन्नद्ध है ।) पाठवें अध्ययन में पाया हुआ कपिल का कथानक बड़ा हृदयहारी है। कपिल कौशाम्बी के उत्तम ब्राह्मण कुल में जन्म लेता है। युवा होने पर श्रावस्ती के एक दिग्गज विद्वान् के पास विद्याध्ययन करता है । यौवन की प्रांधी से पाहत होकर मार्गभ्रष्ट होता है और एक कामुको के चक्र में फंस जाता है । एक दिन इसकी प्रिया राज दरबार में जाने की प्रेरणा करती है और दरिद्रता का हारा कपिल स्वर्णमुद्राओं की भीख के लिए रात्रि के अन्तिम प्रहर में राज दरबार की पोर प्रस्थान करता है, परन्तु सिपाही उसे चोर समझकर गिरफ्तार कर लेते हैं । रहस्य खुलने पर वह राजा के द्वारा मुक्त कर दिया जाता है और उससे यथेच्छ वर मांगन को कहा जाता है । कपिल तुष्णाकुल होकर राज्य मांगन के लिए उद्यत होता है, परन्तु तत्काल ही उसका विवेक जाग्रत हो जाता है, उसका मन कहने लगता है कि दो स्वर्ण मुद्राओं को मांगने प्राया हुआ, तू सम्पूर्ण राज्य की चाह करने लगा। क्या सम्पूर्ण राज्य के मिलने पर भी प्रात्मतोष संभव है ? इस प्रकार विचार कर वह समस्त परिग्रह को छोड़कर साधु हो जाता है और राजा तथा उपस्थित दरबारियों को प्राश्चर्य में डाल देता है । बारहवें अध्ययन में हरिकेशी की कथा संकलित है ।। इस कथा द्वारा जातिवाद और हिंसक यज्ञ का प्रत्याख्यान कर अहिंसक यज्ञ एवं समतावाद की सिद्धि की गयी है। तेरहवें अध्ययन में पाया हुश्रा चित्त-सम्भूति का पाख्यान वैराग्य की ओर ले जाने वाला है। बाइसवें अध्ययन में श्रीकृष्ण, अरिष्टनेमि और राजीमति की कथा वर्णित है, जो राजीमति की चरित्रदढ़ता की दष्टि से महत्त्वपूर्ण है। नारी के चरित्र का उदात्त रूप किसे अपनी ओर आकृष्ट न करेगा ?) (अर्धमागधी भाषा में उपलब्ध प्रागमिक कथा साहित्य में प्रायः ऐसे प्रादर्श या प्रतीक वाक्य उपलब्ध हैं, जिनका अवलम्बन लेकर टीका ग्रन्थों में या उत्तरकालीन साहित्य में सुन्दर कथाओं का सृजन हुआ है ) कहा जाता है कि जातक कथाओं के पूर्व बौद्ध साहित्य में सूत्ररूप में कुछ ऐसी गाथाएं थीं, जिनको आधार मानकर जातक कथाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy