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जाते । श्रनन्तर उन रेशों को कात कर वस्त्र बना लेते हैं । अमरकोश (२, ६, ११२ ) में दुकूल क्षौम का पर्यायवाची है और उसके प्रावरणों को निवीत और प्राकृत कहते थे । हंस दुकूल का उल्लेख आचारांग सूत्र में आया है । कहा गया है कि शक ने महावीर को जो हंस दुकूल का जोड़ा पहनाया था, वह इतना हल्का था कि हवा के मामूली झटके से ही उड़ जाता था । इसकी बनावट की प्रशंसा कारीगर भी करते थे । नायाधामकहाओ ( १, १३ ) के अनुसार यह वस्त्र मृदुल और स्फटिक के समान निर्मल था। हरिभद्र दुगुल्ल का प्रयोग कई जगह किया है ।
देवदृष्य - - यह भी मृदुल, महीन और रेशमी वस्त्र जैसा कपड़ा है । दिव्यवस्त्र के अर्थ में हरिभद्र ने इसका प्रयोग किया है ।
दुकूल '-- श्वेत दुकूल, यह बहुत सुन्दर और कीमती वस्त्र होता था ।
अर्धचीनांशुक -- यह प्राधा रेशमी और प्राधा सूती वस्त्र था । -कमर से ऊपर प्रोढ़ने का वस्त्र ।
उत्तरीय
स्तनाच्छादन - पद्मराग मणि या अन्य कीमती रत्नों से जड़ित रेशमी वस्त्र, इससे स्तनों के श्राच्छादन का कार्य सम्पन्न किया जाता था । अाजकल की कंचुकी के समान
था ।
क्षौमयुगल -- क्षुमा अथवा अतसी की छाल के रेशे बने हुए वस्त्र द्वय । तूली - - - सेमर या मदार की रूई से भरे तकिये को तूली कहा जाता है ।
गण्डोपधान :-- उपधान के ऊपर गण्ड प्रदेश में रखने के लिए उपधानिका थी । कुछ लोगों का अनुमान है कि यह एक गोल तकिया थी, जो सिर के नीचे एक ओर रखी जाती थी । उपधान पक्षियों के परों से भरी तकिया के अर्थ में भी श्राया है ।
forfont --मशनद । यह तकिया शरीर की लम्बाई जितनी होती थी, और सोते समय पैरों के बीच रख ली जाती थी ।
मसूरक " -- गोल गद्दा कपड़ा अथवा चमड़े का होता था और इसमें हई भरी रहती थी । "चित्तावाडिममसूरयमि" का प्रयोग चित्र-विचित्र गद्दे के अर्थ में हुआ है ।
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१ - डा० मोतीचन्द द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय वेष भूषा, पृ० १४७ ।
२--स, पृ० ६७३।
३ - - वही, पृ०
४६४ ।
४ - वही, पृ० ५- - वही, पृ०
६ -- वही, पृ०
पृ०
पृ० ६७४
७ -- वही, ८- - वही, -- वही
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१० - - वही ११ -- वही
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१०० ।
४६४ ।
६५ ।
६३४-३५ ।
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