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आभूषण प्राभूषणों में कटक', केयूर', कर्णभूषण', कुण्डल', मुक्तावली, नुपुर', मुद्रिका', मणिमेखला, मुक्ताहार , चूडारन , विविध रत्न खचित रशना कलाप १, कंकण , कण्ठाभरण १३, कटिसूत्र ", रत्नजटित मुकुट १५ और त्रिलोकसार रत्नावली १६ के नामों का उल्लेख हरिभद्र ने किया है। शरीर को स्त्री और पुरुष दोनों ही विभिन्न प्रकार से सजाते थे। स्त्रियां चरणों में महावर, जंघाओं में कुंकुम राग, स्तनयुगल पर पत्रलेखा, ललाट पर कस्तूरी मिश्रित चन्दन का तिलक, नेत्रों में अंजन, केशों में सुगन्धित मालाएं, पैरों में नपुर, अंगुलियों में मणिजटित मुद्रिकाएं, नितम्बों पर मणिमेखला, बाहुओं के मूल में मालाएं, स्तनों पर पद्मरागमणि घटित वस्त्र , गले में मुक्ताहार १८, कानों में रत्नमय कर्णभूषण १९, मस्तक पर चूडारत्न, गले में भुवनसारहार, हाथों में कंकण, पद्मराग जटित कयर १ एवं चन्दन, कुंकुम आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप करती थीं। अगुरु धूप से केशों को सुगन्धित भी स्त्रियां करती थीं २२ । पुरुष विमल माणिक्य के कटक के यूर--भुजबन्धन, कमर में कटिसूत्र, कानों में कुण्डल २६, मस्तक पर मुकुट, कपोलों पर नाना प्रकार की पत्रलेखा और गले में पुष्पाहार या रत्नाहार धारण करत थे।
शबर या निम्न श्रेणी के अन्य लोग लताओं से केश बन्धन, गुंजा के आभूषण, गरूक लेपन, बल्कलार्ध धारण एवं कठोर धनुष हाथ में धारण किये रहते थे। बाहर जाते समय शिकारी कुत्ते साथ रहते थे ।
१--स०, पृ० ३२॥ २--वही। ३--वही। ४--वही, पृ० १३१. ५--वही, पृ० ७४। ६--वही, पृ० ६४-६६। ७--वही। ८--वही। 8--वही। १०--वही। ११--वही। १२--वही, पृ० ५६७। १३--वही, पृ० ५६७। १४--वही, पृ० ६३९ । १५--वही, पृ० ६३६ । १६--वही, पृ० २५४ । १७--वही, पृ० ६४-६६ । १८--वही। १९--वही। २०-वही, पृ०, ६३८-६३६ । २१--वही। २२-वही। २३--वही। २४--वही, पृ० ५०४ तथा ६७५ ।
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