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________________ अंग और उपांग साहित्य में सिद्धांतों के प्रचार और प्रसार के हेतु अपूर्व प्रेरणाप्रद और प्रांजल पाख्यान उपलब्ध हैं। इनमें ऐसे अनेक चिरगूढ़ और संवेदनशील आख्यान पाये हैं, जो ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों की प्रतीति के साथ बर्बरता की निर्मम घाटी पर निरुपाय लुढ़कती मानवता को नैतिक और आध्यात्मिक भावभूमि पर ला मानव को महान् और नैतिक अधिष्ठाता बनाने में सक्षम है । आगमिक साहित्य का पालोडन करने से ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में थोड़े से उपमान ही थे। आगे चलकर विषय निरूपण को सशक्त बनाने के लिये घटनाओं और वृत्तान्तों की योजना की गयी तथा पाख्यान साहित्य का श्रीगणेश हुआ । अतः प्राकृत कथाएँ प्रागमिक कथा-साहित्य की प्राची पर उदित होकर पन्द्रहवीं-सोलहवीं शती तक विकसित होती रहीं। प्राकृत कथाकारों ने समाज और व्यक्ति के जीवन की विकृतियों पर जितना प्रहार कथाओं द्वारा किया है, उतना साहित्य की अन्य विधानों के द्वारा कभी संभव नहीं था। यह भी यहां ध्यातव्य है कि समाज और व्यक्ति के विकारी जीवन पर चोट करना मात्र ही इन कथाओं का लक्ष्य नहीं है, अपितु विकारों का निराकरण कर जीवन में सुधार लाना तथा जीवन को सर्वांगीण सुखी बनाना भी है। ___ इस सत्य को प्रत्येक विचारवान् व्यक्ति स्वीकार करता है कि भारतीय चिन्तन क्षेत्र में जैन आगम-साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है । इसे अलग कर दें तो भारतीय चिन्तन चमक कम हो जायगी और वह एक प्रकार से धुंधला-सा लगेगा। जैन आगमसाहित्य में केवल कल्पना, बौद्धिक विलास एवं मत-मतान्तरों के खंडन ही नहीं है, बल्कि उसमें ज्ञानसागर के मन्थन से समुद्भूत जीवन स्पर्शी अमृतरस है । कथाओं, उपमानों, उदाहरणों एवं हेतुओं द्वारा दार्शनिक, आध्यात्मिक और नैतिक तथ्यों की सुन्दर व्यंजनाएं इस साहित्य में उपलब्ध हैं । अतएव यह सार्वजनीन सत्य है कि प्राकृत कथा-साहित्य की गंगोत्तरी यह प्रागम साहित्य ही हैं । जन साहित्य की उपलब्धियों और विशेषताओं का आकलन करने वाले मनीषी उसके कथा-साहित्य के समक्ष नतमस्तक है। विण्टरनित्स ने--"द जैनास् इन द हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिट्रेचर" में बताया है "श्रमण साहित्य का विषय मात्र ब्राह्मण पुराण और निजधरी कथाओं से ही नहीं लिया गया है, किन्तु लोककथाओं, परीकथाओं से ग्रहीत है।" जैन कथासाहित्य की व्यापकता और महत्ता के संबंध में प्रो० हर्टेल का अभिमत है--"जनों का बहुमूल्य कथासाहित्य पाया जाता है । इनके साहित्य में विभिन्न प्रकार की कथाएं उपलब्ध है, जैसे--प्रमाख्यान, उपन्यास, दृष्टान्त, उपदेशप्रद पशकथाएं आदि। कथाओं के माध्यम द्वारा इन्होंने अपने सिद्धांतों को जनसाधारण तक पहुंचाया है। इन्होंने प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में वर्णनात्मक कथा-साहित्य की कला का विकास किया है ।" 1-The guhjects of poetry taken up by it are not Brahmanic myths and legends, but popular tales, fairy stories, fables and parables. The Jainas in the history of Indian Literature-Edited by JINA VIJAYA MUNI, Page 5. 2-In those books as well as in the commentaries on the sidhanta, the Jains pogses an extremely valuable narrative literature which includes stories of every kind . romances, novels, parables, and beast fabler, legend and fairy tales, and funny stories of every description. The Svetamber monks used these stories as the nost efective means of spreading t.eir doctrines ainongst their country nên, and dov lope a real art of a cration in all the aboiemen one languages npr se and vers in KAVY A ag well as in the lainest style of everyday lif On the literature of the Svetamberas of Gujerat. Page 6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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