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परोपकारी का परिचय देकर उसे छ ुड़ा देता है । लक्ष्मी पुनः धरण के पास आ जाती है । मार्ग में चलने पर पल्लीपति के व्यक्ति बलिदान के लिए इन्हें पकड़ लाते हैं । इसी बलिदान के लिए एक अन्य व्यक्ति भी लाया गया है । शवरराज बलि करने के लिए आता है । वह दुगिलक से कहता है -- " में आपको स्वर्ग भेजता हूं । जीवन छोड़कर जो भी चाहें मांग लीजिए" । दुगलक चुप रहता है, उसके बार-बार ऐसा कहने पर भी जब वह कुछ उत्तर नहीं देता तो धरण कहता है -- "भद्र इसे छोड़ दीजिए और इसके स्थान पर मेरा बलिदान दीजिए" । इस वाक्य के सुनते ही पल्लीपति कालसेन धरण को पहचान लेता है वह निवेदन करता है कि श्राप मेरे परोपकारी हैं, मैं प्रापकी कौन-सी सेवा करूं ? धरण उत्तर देता है - "महापुरुष ! नैवेद्य, दीप, धूप श्रादि से देवता की पूजा करें, प्राणिवध के द्वारा नहीं" । अभिनयात्मक शैली में धरण का शील विकसित होता चलता है ।
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धरण के शील में सबसे बड़ा तत्त्व दया, परोपकार और श्रात्मसंयम का है । वह स्वयं कष्ट सहन कर लेना उत्तम समझता है, पर अन्य किसी को कष्ट नहीं प्राप्त होने देना चाहता है । यह शील धीर शान्त कोटि का हैं । श्रर्थ और काम का संघर्ष भी उसके जीवन में है । परहित साधन के समान अन्य धर्म या कर्त्तव्य उसकी दृष्टि में नहीं है । हरिभद्र ने धरण के शील की अभिव्यंजना के लिए धरण के समक्ष परिस्थितियों का निर्माण बड़े प्रभावक ढंग से किया हैं । पत्नी के अनेक अपराध करने पर भी उसको सदा क्षमा कर देता है । उसके प्रति कभी भी रोष नहीं दिखलाता है । सुवदन जैसे धोखेबाज को भी धन देता है और सदा उसे मित्र समझता है । हृदय विशाल सागर हैं, जिसमें कभी उफान नहीं श्राता । परिस्थितियों के घात-प्रतिघात सहन करने की उसमें अपूर्व क्षमता है । श्रात्मसंयम का ऐसा उदाहरण शायद ही अन्यत्र मिल सकेगा । धरण के जीवन में मौर्य चाण्डाल और पल्लीपति कालसेन को गूंथ कर तो लेखक ने प्रसाद अवसाद का भाव खचित करने में कोई कमी नहीं रखी
उसका
1 इस शील में करुणा संचारी भाव तो श्राद्यन्त व्याप्त है । हमें लगता है कि धरण उस शिव साधना का उदाहरण है, जिन्होंने काम भस्म कर दिया है । जीवन में नीतिमूलकता इतनी अधिक एकरसता - मोनोटोनी उत्पन्न करती हैं, जिससे काव्यशास्त्रीय शीलपंगु बन जाता है । लक्ष्मी धरण की पत्नी उसकी पूरक प्रेरणा नहीं, किन्तु वह उसके लिए चुनौती है ।
धरण धनार्जन के लिए वणिक-बुद्धि का प्रयोग करता है, तो शरणागत की रक्षा और धन वितरण में क्षत्रिय बुद्धि का । श्राठवीं शताब्दी में धरण का शील समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी रहा होगा । उसका आदर्श शील यद्यपि आज भी उपयोगी है, पर समाज बीच इस प्रकार का शील किरकिरा हो सिद्ध होगा ।
पुष्प, चन्दन,
इस प्रकार
समाज के दलित और पतित वर्ग के पुरुष पात्रों में खंगिल, मौर्यचाण्डाल, कालसेन, भिल्लराज आदि प्रमुख हैं ।
खंगिल
खंगिल का चरित्र नवयुग के हरिजन का चरित्र है । चाण्डाल होते हुए इतना विशाल हृदय और मानवता का स्रोत उसमें विद्यमान है, जिससे वह अकेला ही रूढ़ियों, अन्धविश्वासों और परम्परागत मान्यताओं का विरोधी तत्व माना जा सकता है । चोरी, डकैती और हत्या जैसे पेशेवर वग का होते हुए खंगिल की उदारता उसकी मौलिक विशेषता है मानवता के उदास धरातल का निर्माण इस प्रकार के सुसंस्कृत पात्र ही
१ - - स०, पृ० ५३४ ।
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