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________________ २३८ किया सिंहकुमार का शील धीरोदात्त शील है। इसमें क्षमा, गंभीरता, दृढ़ संकल्प एवं विनयमिश्रित स्वाभिमान प्रादि समस्त गुण है। विनीत, मधुर, त्यागी, दक्ष, प्रियंवद, शचि, समलोक, वाङ्गमी, रुढ़वंश, स्थिर, युवा, बुद्धिमान, प्रज्ञावान्, स्मृतिसम्पन्न, उत्साही, कलावान्, शास्त्रचक्षु, प्रात्मसम्मानी, शूर, दृढ़ तेजस्वी और धार्मिक ये बाईस नायकोचित गुण सिंहकुमार में विद्यमान है। राजकुमारों के चरित्र स्थापत्य पर विचार करने के उपरान्त अब सार्थवाह चरित्र को जान लेना भी आवश्यक है । इस श्रेणी के चरित्रों में से धरण के चरित्र को उदाहरणार्थ धरण करना अधिक समीचीन होगा। धरण धरण' सम्पन्न परिवार का व्यक्ति है । इसका पिता माकन्दी नगरी का सबसे बड़ा श्रेष्ठी है। युवक होने पर यह मदनमहोत्सव के अवसर पर मलय सुन्दर उद्यान में क्रीड़ा करने के लिए जाता है। संयोगवश मलय सुन्दर उद्यान से लौटते समय पंचनन्दी सेठ के पुत्र देवनन्दी का रथ भी नगर द्वार पर आ जाता है। दोनों रथों के आमनेसामने आ जाने से नगर-द्वार अवरुद्ध हो जाता है, लोगों का आना-जाना रुक जाता है। धनमद में मत्त दोनों ही युवक है, रथ के पीछे हटाने में दोनों ही अपना-अपना अपमान समझते हैं। नागरिकों ने उनके धनमद को देखकर निश्चय किया कि ये दोनों परदेश जायें और एक वर्ष में जो सबसे अधिक धनार्जन करके प्राय गा, वही श्रेष्ठ समझा जायगा । प्रधान नागरिकों ने यह संदेश इन लोगों को सुनाया। ___संवेदनशील धरण को संदेश सुनकर बहुत आत्मग्लानि उत्पन्न हुई। उसने निवेदन कि मझसे अनचित हया है। इस चंचल लक्ष्मी का क्या मद ? नागरिकों के निर्णय के अनुसार, वह अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ धनार्जन के लिए रवाना हो जाता है। परोपकारी धरण जंगल के रास्ते से आगे बढ़ता है। उसे शवर-युवक रुदन करता हुआ दिखलायी पड़ता है। पूछने पर उसे ज्ञात होता है कि पल्लीपति को सिंह ने घायल कर दिया है, उसके अभाव में उसकी पत्नी भी अपना जीवन विसर्जित कर रही है। अतः धरण जाकर औषधि प्रयोग से पल्लीपति को स्वस्थ कर देता है।। पति प्रसन्न होकर धरण से कहता है--"महानुभाव ! आपने मुझे जीवनदान दिया है, मैं बदले में क्या उपकार करूं ? धरण ने उत्तर दिया। महापुरिसो खु तुमं, ता किं अवरं भणीयइ, तहावि सत्तेसु दया।" आगे चलने पर उसे मौर्यनाम के चाण्डाल को वधस्थान की ओर ले जाते हुए व्यक्ति मिलते हैं। पूछने पर उसे पता लगता है कि चोरी के अपराध में इसे बन्दी बनाया गया है। वह धरण का शरणागत बन जाता है। धरण एक लक्ष दीनार देकर मौर्य को मुक्त करा देता है। अचलपुर पहुंचकर प्रभूत धनार्जन करता है और अपने धन को छकड़ों में लादकर माकन्दी को रवाना कर देता है। मार्ग में चलते समय लक्ष्मी थक जाती है, प्यास और भूख से वह मरने की स्थिति में हो जाती है। धरण उसकी प्राणरक्षा के लिए अपनी भजा से रक्त और जंघा से मांस काटकर पकाकर देता है। शरीर में बल प्राने पर लक्ष्मी प्रागे चलती है और रात को वे लोग एक काली के मन्दिर में ठहरते हैं। चण्डरुद्ध नामका चोर राजभाण्डागार से चोरी कर वहीं पाता है। दुष्टा लक्ष्मी उससे मिलकर अपने पति को ही चोरी के अपराध में बन्दी बनवा देती है। धरण को फांसी का आदेश मिलता है, पर मौर्य चाण्डाल अपने १--समराइच्चकहा षष्ठ भव। २--स०, पृ० ५०७ । पल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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