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हरिभद्र ने एक स्तम्भ शीर्षक प्रासाद में राजा श्रेणिक के बगीचे में असमय में फलने वाले आम का जिक्र किया है। एक मातंग इस आम्र वृक्ष से मन्त्रबल द्वारा आम तोड़ लेता था और राजा के कर्मचारियों को इसका पता नहीं चलता था। एक दिन अभयकुमार ने उसे किसी प्रकार पकड़ा। राजा उससे मन्त्र सीखने लगा, पर स्वयं उच्च आसन पर आसीन रहने के कारण नहीं सीख सका। जब उसने नीचे बैठकर मन्त्र सीखना आरम्भ किया तो मन्त्र याद हो गया' । विद्या का चमत्कार शीर्षक कथा में हरिभद्र ने बताया है कि एक परिव्राजक ने एक नाई से मन्त्र सीखा और वह मंत्र बल से अपने त्रिदण्ड को आकाश में लटका देता था। राजा द्वारा गुरु का नाम पूछने पर उसने हिमालय गुफावासी किसी साधु को बताया और नाई का नाम छिपा लिया, जिससे उसकी मन्त्र शक्ति लुप्त हो गयी।
उक्त दोनों आख्यानों का स्रोत अम्ब जातक को माना जा सकता है। अम्बजातक में आया है कि एक बार बोधिसत्व ने महाचाण्डाल कुल में जन्म लिया और मन्त्र शक्ति द्वारा असमय में आम उत्पन्न करने की योग्यता प्राप्त कर ली। ये प्रातःकाल ही बहंगी ले गांव से निकल आरण्य में एक आम्रवृक्ष के पास जा, उससे सात कदम की दूरी पर खड़े हो मन्त्र पढ़कर पानी का छींटा देते। आम के पुराने पत्ते झड़ जाते,
न पत्ते निकल आते और नये पके फल गिर जाते। बोधिसत्व यथेष्ट आम के फल घर ले कर चले आते। एक दिन एक ब्राह्मण कुमार ने बोधिसत्व की इस कार्यवाही को देख लिया और वह बोधिसत्व के पास मन्त्र सीखने के लिये आया। कुछ दिनों तक बोधिसत्व की सेवा करने के उपरान्त उसने वह मन्त्र सीख लिया और एक राजा की सभा में जाकर असमय में आम के फल खिलाकर लोगों को चमत्कृत किया। राजा द्वारा गुरु का नाम पूछे जाने पर इस ब्राहमण ने चाण्डाल का नाम न लेकर अन्य किसी आचार्य का नाम ले दिया, जिससे उसकी विद्या का चमत्कार लप्त हो गया। ___ तुलना करने से स्पष्ट है कि उक्त दोनों आख्यानों की प्रेरणा हरिभद्र ने अम्बजातक से ली होगी। हरिभद्र के लघु आख्यानों में कुछ आख्यान व्यवहारभाष्य वृत्ति, बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति, आवश्यक चूणि एवं निशीथ चूणि में भी आये हैं। आख्यानों के उपदेशतत्व और अनेक वर्णन अंग, उपांग, छेदसूत्र और मूलसूत्रों में वर्तमान है।
इसमें सन्देह नहीं कि हरिभद्र ने अपनी प्राकृत कथाओं के स्रोत प्राकृत, पालि और संस्कृत साहित्य का अवगाहन कर ग्रहण किये हैं। हरिभद्र ने उक्त साहित्य के अतिरिक्त अपने युग में प्रचलित स्थानीय लोक कथाओं को भी आख्यान साहित्य में स्थान दिया
विभिन्न स्रोतों से चयन करने पर भी हरिभद्र में संवेदनशीलता और कल्पना शक्ति इतनी अधिक है, जिससे उनका कथासाहित्य बहुत ही सरस और प्रभावोत्पादक बन गया है। समराइच्चकहा एक श्रेष्ठ धार्मिक उपन्यास है, इसमें उपन्यास के सभी गुण विद्यमान हैं। हरिभद्र ने कतिपय कथासूत्रों को पूर्व रचित कृतियों से अपनाया है, किंतु उन्हीं के समानान्तर दृश्यों, क्रियाओं और भावनाओं की कल्पना करके नाना प्रकार के प्रभावोत्पादक वृत्त गढ़े हैं। यही कारण है कि इनकी रचनाओं में मानव जीवन का सच्चा स्वरूप प्रदर्शित हुआ है। धर्म कथा होने पर भी इनमें केवल धर्म, नीति के
१. द. हा०, पृ० ८१ । २---द० हा० पृ० २१०-२११ । ३--जा० (च० खंड) अम्बजातक, पृ० ४००--४०६ ।
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