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तत्र ही नहीं हैं, किंतु आनन्द की विशुद्ध अनुभूति व्यक्त हुई ह । इनकी कथाओं में व्यंग्य है, परिहास है, विस्मय है, कौतूहल है और है जीवन के प्रति सच्चा उल्लास । इनके पात्रों में साहस की स्फूर्ति के साथ शौर्य की गरिमा भी है ।
जोवन मँ बहिर्जगत् की घटनाओं के साथ अन्तर्जगत् में त्याग और प्रेम की घटनाएं जितनी यथार्थ हैं, उतनी ही लोभ और हिंसा की लीलाएं भी । सतु अतत् प्रवृत्तियों का संघर्ष जीवन में सदा होता रहता है, हरिभद्र ने इन्हीं प्रवृत्तियों को एक सच्चे उपन्यासकार के समान चित्रित कर अपने कथासाहित्य को यथार्थवादी बनाया है । मानसिक विकारों के सूक्ष्म विश्लेषण में हरिभद्र को अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई है । पात्र क्रोध, माया, मान और लोभ से अभिभूत हो नाना प्रकार की घटनाओं को घटित करते हैं । कर्मसंस्कार के कारण अलक्ष्य शक्ति उनके जीवन का संचालन करती दिखलायी पड़ती है । अतः संक्षेप में यह कह सकते हैं कि समराइच्चकहा कथासाहित्य में पहला कथा - काव्य हैं । इस कोटि की रचनाएं विश्व साहित्य में भी कम ही हैं । वास्तविकता यह है कि हरिभद्र का अनुभव क्षेत्र बहुत व्यापक हैं, अतः इन्हें विभिन्न चरित्रों के निर्माण में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है ।
कथानक
२ । कथा में कथानक का वही स्थान है, जो शरीर में हड्डियों का। जिस प्रकार शरीर के लिये मांस-पेशियों आदि की आवश्यकता आवरण के रूप में रहती है, उसी प्रकार भाषा, शैली और शील-निरूपण की कथाओं में । बिना हड्डियों के जैसे मांस-पेशियाँ स्थिर नहीं रह सकतीं, वैसे ही बिना कथानक के कथा का ढांचा खड़ा नहीं किया जा सकता। तात्पर्य यह है कि कथानक वह तत्त्व हैं, जो कालक्रम से शृंखलित घटनाओं को रीढ़ की हड्डी की तरह दृढता देकर गति देता है और जिसके चारों ओर घटनाएं लता की तरह उगती, बढ़ती और फैलती हैं । कथा का सामान्य अर्थ है कार्य-व्यापार की योजना । " एम० फोर्स्टर ने कथा और कथानक का अन्तर बताते हुए कहा है कि कथा है घटनाओं का कालानुक्रमिक वर्णन - कलेवा के बाद व्यालू, सोमवार के बाद मंगलवार, मृत्यु के बाद नाश आदि, जब कि कथानक घटनाओं का वर्णन होता है, परन्तु उसमें कार्य कारण संबंध पर विशेष बल दिया जाता है" । "राजा मर गया और बाद में रानी मर गई" कहानी है । "राजा मर गया और फिर उसके वियोग में रानी मर गयी" कथानक है । कालानुक्रम यथावत् है, परन्तु कार्य कारण की भावना ने उसे अभिभूत कर लिया है । कथानक में समय की गति घटनावली खोलती जाती है और साथ ही यह भी प्रमाणित होता जाता है कि विश्व का संघटन युक्तियुक्त है और उसमें कार्य कारण का अन्तः संबंध है तथा वह बुद्धिगम्य है ।
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कथानक की घटनाएं वास्तविक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की प्रतिकृति नहीं होती, उनकी संयोजना कला के स्वनिर्मित विधान के अनुसार होती हैं । हरिभद्र
समराइच्चा, धूर्ताख्यान और अन्य लघुकथाओं में कथानकों को वास्तविक जीवन क्षेत्र के अतिरिक्त देव-दानव, अति प्राकृत और अप्राकृतिक घटनाओं से भी निर्मित किया है । कथानक की सबसे बड़ी कसौटी विश्वसनीयता है, जो हरिभद्र की कथाओं के कथानकों में पूर्णतया पायी जाती है । एकाध घटना जिसका संबंध अप्राकृत या अतिप्राकृत तत्त्व से है वह इतनी दृढ़ता और तर्कपूर्ण युक्ति के साथ निबद्ध की गई है कि पाठक को उसपर विश्वास करना ही पड़ता है ।
हरिभद्र के द्वारा संयोजित कथानकों की गतिशील घटनाएं सरल रेखा में नहीं चलतीं, उनमें पर्याप्त उतार-चढ़ाव आते हैं । पात्रों के भाग्य बदलते हैं, परिस्थितियां उन्हें कुछ और बना देती हैं । वे जीवन संघर्ष में जूझकर संघर्षशील रूप की अवतारणा
१ -- हिन्दी साहित्य कोष से उद्धृत, पृ० १८४ ।
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