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श्री हर्ष के तीन नाटक प्रसिद्ध है--प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानन्द । इन नाटकों से हरिभद्र ने समराइच्चकहा में कुछ कथानक सन्दर्भ और कल्पनाओं के स्रोत ग्रहण किये है। मदन महोत्सव का वर्णन जिस प्रकार का रत्नावली में है, लगभग वैसा ही समराइच्चकहा में भी।
समराइच्चकहा में एक प्रसंग आता है कि शान्तिमती अपने पति के वन में न मिलने से बहुत दुःखी है। वह चारों ओर तलाश करती है, जब कहीं उसका पता नहीं पाती हैं तो अशोक वृक्ष में लताओं का पाश बनाकर फांसी लगाने का प्रयास करती हैं।
उक्त कथानक का स्रोत रत्नावली में सागरिका द्वारा लतापाश से फांसी लगाकर मरने की तैयारी रूप घटना हो सकती है। दोनों घटनाओं की वर्णन शैली प्रायः समान है। प्रियदशिका के वर्णनसाम्य भी कई स्थलों पर उपलब्ध है। ___ संस्कृत साहित्य में सुबन्धु, दण्डी और बाणभट्ट गद्य के आचार्य माने गये हैं। ये तीनों ही आचार्य हरिभद्र से पूर्ववर्ती है, अतः इन तीनों की छाप हरिभद्र पर स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। सुबन्धु की वासवदत्ता से समराइच्चकहा में लोककथाओं की रूड़ियों के प्रयोग ग्रहण किये गये प्रतीत होते हैं। वासवदत्ता में तोता नायकनायिका को मिलाने का कार्य करता है। इस संदर्भाश के स्रोत से लीलारति विद्याधर और शुक के वार्तालाप तथा षड्यन्त्र का प्रसंग समराइच्चकहा में निर्मित किया गया होगा। वासवदता से समराइच्चकहा में वर्णन प्रसंग भी ग्रहण किये गये होंगे।
सुबन्धु के अनन्तर दण्डी की कृति दशकुमार चरित का नाम आता है। दशकुमार चरित में धूर्त, लुच्चे, लफंग, जुमारी और वेश्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है। हरिभद्र समराइच्चकहा में दण्डी के कई कथाओं से प्रभावित है। नायक-नायिकाओं के प्रेम-विरह वर्णन के प्रसंगों का उद्गमस्थल दशकुमार चरित को माना जा सकता है। यों तो प्रणय की रोमानी प्रवृत्ति का इतिवृत्त वासवदत्ता से ही आरम्भ हो जाता है पर इसकी परिपक्वता कादम्बरी में मिलती है। श्लेष, विरोध, उपमा और परिसंख्या अलंकारों का स्रोत उक्त तीनों अनुपम रचनाओं को मान सकते हैं। समराइच्चकहा में, समुद्र, वन, नदी, पर्वत, नगर और प्रासादों के वर्णन की पद्धति का स्रोत कादम्बरी को कहा जाय तो कुछ अनुचित न होगा। भाव तरलता, अनूठी कल्पना, प्रवाहमयी भाषा, संगीत, और चित्रमत्ता के लिए हम हरिभद्र को बाण का आभारी मान सकते हैं। यद्यपि यह सत्य है कि हरिभद्र ने अपनी मौलिक प्रतिभा के कारण उपर्युक्त साहित्य से स्रोत मात्र ही ग्रहण किये हैं। कथानकों का विस्तार और वर्णनों का प्राचुर्य इनकी अपनी विशेषता है। इतिवृत्त में जहां-कहीं भी भावात्मक स्थल आये हैं, उनको हरिभद्र ने पूर्णतया सरस बनाया है।
धूर्ताख्यान का कथास्रोत विभिन्न पुराणों, ऋग्वेद, रामायण और महाभारत को माना जा सकता है। डा० ए० एन० उपाध्य ने इस ग्रन्थ के कथानक स्रोत पर विस्तार से विचार किया है। अतः इस विषय पर अधिक लिखना पिष्ट-पेषण मात्र होगा।
हरिभद्र की लघुकथाओं के स्रोत वसुदेवहिण्डी, आगमिक-साहित्य, जातक-ग्रन्थ, महाभारत, पुराण, दशकुमारचरित, : पंचतन्त्र आदि ग्रन्थों को मान सकते है। लघुकथाओं में कुछ ऐसी लोककथाएं हैं, जो अबतक लोक-साहित्य में स्थान पायी हुई है। दशवै कालिक टीका में हरिभद्र ने दो ग्रामीण गाड़ीवानों के आख्यान उद्धृत किये हैं। ये दोनों आख्यान
2..-डा० ए० एन० उपाध्ये द्वारा लिखित धूर्ताख्यान की अंग्रेजी प्रस्तावना, पृष्ठ २५ ...३६
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