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इससे स्पष्ट है कि समराइच्चकहा की मूलकथा का स्रोत वसुदेवहिंडी का उपर्युक्त "कंसस्स पुन्वभवो" ही है। इसी मूल उपादान को लेकर हरिभद्र ने "समराइच्चकहा" जैसे विशाल कथाग्रंथ को लिखा है । समराइच्चकहा की कई अवान्तर कथाओं और सन्दर्भो के स्रोत भी वसुदेवहिंडी में मिल जाते हैं। ___ समराइच्चकहा के द्वितीय भव में मधुबिन्दु दृष्टान्त पाया है। हरिभद्र ने इस दृष्टान्त में बताया है कि कोई व्यक्ति दारिद्र्य दुःख से पीड़ित होकर निज देश छोड़कर परदेश को गया और वह ग्राम, नगर तथा शहरों से गुजरता हुआ मार्ग भूलकर भयंकर जंगली पशुओं से व्याप्त अटवी में पहुंचा। अटवी में उसे दौड़ता हुआ मदोन्मत्त एक वनगज दिखलायी पड़ा तथा सामने हाथ में तीक्ष्ण खडग लिए विकराल दांत निकाले उसे एक राक्षसी प्राती दिखलायी पड़ी। पीछे से खूखार हाथी पाने से और सामने से प्राणसंहारक राक्षसी के पाने से वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो प्राणरक्षा के लिए सोचने लगा। इसी समय उसे पूर्व दिशा में बड़ा वटवृक्ष दिखलायी पड़ा। हाथी को तेजी से अपनी ओर आता हुआ देखकर वह प्राण बचाने के लिए उस वटवृक्ष के पास में स्थित एक जीर्ण कूप में कूद पड़ता है, किन्तु उस कूप के तल में चार विषले सर्प, मुंह फैलाये हुए दिखलायी पड़ते है तथा मध्य में फत्कार करता हमा, मंह खोले हाथी के समान कृष्ण वर्ण का एक विशाल अजगर दिखलायी पड़ता है । वह भयभीत हो कुएं में लटकती हुई वृक्ष की जटानों को पकड़कर कुछ समय तक जीवित रहना चाहता है । पर जब वह ऊपर को मुंह उठाकर देखता है तो उसे तीक्ष्ण दांतवाले धवल और कृष्ण वर्ण के दो विशालकाय मूषक उन जटाओं को काटते हुए दिखलायी पड़ते हैं। जंगली हाथी ने पीछा किये मनुष्य को न पाया तो वह क्रोधित होकर उस वृक्ष को जोर-जोर से हिलाने लगा, जिससे उस वटवृक्ष पर लगा हुआ मधुमक्खियों का छत्ता उस जीर्ण कूप में गिर गया और क्रुद्ध हो मधुमक्खियां उसके शरीर में चिपट गयीं। संयोग से मधु की कुछ बून्द उसके सिर पर गिरी और वे बून्द मस्तक से होती हुई उसके मुख में प्रविष्ट होने लगीं, जिनका उसने आस्वादन किया और अन्य पाने वाली मधु बिन्दुओं की प्रतीक्षा करने लगा। वह अजगर, सर्प, हाथी, मूषक और मधुमक्खियों के भय की परवाह न कर मधुबिन्दु के रसास्वादन में प्रासक्त हो अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करने लगा।
इस दृष्टांत का उपसंहार करते हुए प्राचार्य ने कहा कि जो पुरुष है, वह तो जीव है। अटवी का भ्रमण चतुर्गति है, जंगली हाथी मृत्यु है, निशाचरी बुढ़ापा है, वटवृक्ष मोक्ष है, विषयातुर मनुष्य इस पर चढ़ने में असमर्थ रहता है, कूप मनुष्यत्व है, सर्प कषाय है, जटा प्रायु है, कृष्ण और श्वेतमूषक कृष्ण और शुक्ल पक्ष हैं। मधुमक्खियां विविध प्रकार की व्याधियां है। भयंकर अजगर नरक है और मधुबिन्दु के समान ये सांसारिक क्षणिक सुख
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यही दृष्टान्त वसुदेवहिंडी "विसयसुहोवमाए महुबिन्दुदिद्रुतं" नाम से प्राया है । वर्ण्य विषय दोनों ग्रंथों में समान रूप से ही अंकित है। हरिभद्र ने मात्र वर्णन को साहित्यिक बनाया है तथा अटवी, कूप आदि का सांगोपांग चित्र उपस्थित किया है--वसुदेवहिंडी में बताया है--"कोई पुरिसो बहुदेस-पट्टणवियारी अडवि सत्येण समं पविट्ठो । चोरेहि यत्थे अब्भाहतो । सो पुरिसो सत्थपरिभट्ठो मूढदिसो परि-भमंतो दाणदद्दिणमुहेण वणगएणाभिभूयो । तेण पलायमाणेण पुराणकूवो तण-दब्भपरिच्छन्नो दिहो। तस्स तडे महंतो वडपीयवो, तस्स पारोहो कूवमणुपविट्ठो । सो पुरिसो भयाभिभूप्रो पारोहमवलंबिऊण ठिो
१--सं० पृ० २ । १३४---१३६ ।
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